– प्रचुर मात्रा में टाइगर के लिए हो गया है शिकार उपलब्ध
शैलेंद्र कालरा । पांवटा साहिब
हिमाचल के सिंबलवाड़ा नेशनल पार्क व हरियाणा की कलेसर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बेसब्री से ”टाइगर“ के स्वागत के लिए तैयार है। लेकिन नेचर के सामने इस बात की गारंटी नहीं ली जा सकती कि टाइगर आएगा या नहीं। दरअसल उत्तराखंड की सीमा पर वन्यप्राणी क्षेत्र को इस कारण टाइगर के आने की उम्मीद बंधी है क्योंकि अब इसके लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।
टाइगर के शिकार के लिए पिछले कुछ वर्षों में वन्यप्राणियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। हालांकि शिकार की आबादी हिमाचल में हजारों में नहीं पहुंची है, लेकिन अगर इसके साथ हरियाणा की कलेसर सेंचुरी को भी जोड़ लिया जाए तो निश्चित तौर पर टाइगर का यह क्षेत्र स्थाई आवास बन सकता है। अहम बात यह है कि उत्तराखंड का राजा जी नेशनल पार्क भी इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। वन्यप्राणियों के आने-जाने के लिए कुदरत ने एक गलियारा भी बना रखा है। इसकी तस्दीक एमबीएम न्यूज नेटवर्क को उपलब्ध ट्रैप कैमरों की एक्सक्लूजिव तस्वीरों से होती नजर आ रही है।
टाइगर के आने की उम्मीद इस कारण बढ़ती नजर आ रही है क्योंकि टाइगर के मनपसंद आहार ”हिरण प्रजातियां“ की आबादी पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। इसमें टाइगर को सांभर का शिकार बेहद पसंद है क्योंकि इसका वजन अधिक होता है। जरूरत पड़ने पर टाइगर चीतल व काकड़ का शिकार भी कर लेता है। विशेषज्ञों की मानें तो टाइगर को पानी, भोजन के अलावा रहने के लिए ऐसी जगह चाहिए होती है, जिसमें कोई दखलअंदाजी न हो।
एक तर्क यह भी है कि जब इस क्षेत्र में तेंदुए की आबादी बढ़ रही है। साथ ही तेंदुए भोजन की तलाश में इंसानों की बस्तियों पर हमले नहीं कर रहे हैं तो टाइगर भी इलाके में सरवाइव कर सकता है। हालांकि सिंबलवाड़ा नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 27 वर्ग किलोमीटर के आसपास ही है, लेकिन साथ लगते हरियाणा के वन्यप्राणी क्षेत्र का क्षेत्रफल 200 से 300 वर्ग किलोमीटर के बीच बताया गया। लिहाजा टाइगर के कदमताल के लिए दो राज्यों का वन्यप्राणी क्षेत्र आंखें बिछाए बैठा है।
गत वर्ष मई माह के महीने में हिमाचल वन्यप्राणी विभाग को टाइगर के रेणुका सेंचुरी क्षेत्र में आने के संकेत मिले थे, लेकिन बाद में इस पर मुहर नहीं लग पाई। हालांकि विभाग ने सेंचुरी में ट्रैप कैमरों का जाल बिछा दिया था। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। 90 के दशक में सिंबलवाड़ा वन्यप्राणी क्षेत्र में टाइगर के पंजों के निशान मिले थे।
उल्लेखनीय है कि 2007 से सिंबलवाड़ा व कलेसर वन्यप्राणी क्षेत्रों में हाथी भी नियमित तौर पर आ रहा है। सिंबलवाड़ा नेशनल पार्क के आरओ रामपाल ने माना कि इस वक्त सिंबलवाडा-कलेसर में टाइगर के लिए उपयुक्त माहौल है।
इस कारण भी हैं उम्मीदें
वन्यप्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि टाइगर को शिवालिक पहाड़ियों में उपयुक्त वातावरण मिलता है। सिंबलवाड़ा के साथ-साथ कलेसर वन्यप्राणी क्षेत्र इसी क्षेणी में आते हैैं। इसके अलावा रेणुका सेंचुरी भी शिवालिक रेंज में ही है। उल्लेखनीय है कि सिंबलवाड़ा वन्य क्षेत्र को 2011 में नेशनल पार्क का दर्जा मिला था। इसके कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट से युक्तिकरण की फाइल क्लीयर होने के बाद अब इसे नेशनल पार्क का दर्जा हासिल हो गया है। यह भी बताया गया कि इस नेशनल पार्क में बहराल का भी कुछ क्षेत्र शामिल हो गया है, इससे जंगल में गुज्जरों की दखलअंदाजी भी कम होगी।
क्या है धार्मिक आस्था?
ऐसी धारणा है कि नाहन-पांवटा मार्ग पर स्थित कटासन देवी मंदिर में लगभग 30 से 40 साल पहले टाइगर नियमित तौर पर आता था। ऐसा भी माना जाता है कि टाइगर माता के दर्शनॉ के बाद वापिस लौट जाता था। यह तमाम बातें वन्यप्राणी विभाग की उम्मीदों को बढ़ा रही हैं।