सोलन/शिमला, 25 अप्रैल : समूचा राज्य चुनाव के रंग में रंगा हुआ है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चरम पर पहुंच रहा है। विडंबना देखिए, एक युवक की वीरता पर सत्ता व विपक्ष के नेताओं के मुख से दो शब्द प्रशंसा के नहीं निकले। पालमपुर हादसे की पीड़िता से मिलने तो नेता पीजीआई (PGI) पहुंचे, साथ ही फोटो सेशन भी किया। वहीं, पीजीआई के ही एक कोने में चौपाल उपमंडल के चम्बी गांव का 24 वर्षीय ऋतिक दर्द से कराह रहा था, मगर किसी ने भी कुशलक्षेम नहीं पूछा। ये अलग बात है कि एमबीएम न्यूज नेटवर्क के समाचार के बाद सोलन की सामाजिक संस्थाएं इलाज के खर्च में मददगार बनी।
ट्रेन हादसे में एक टांग गंवा चुके ऋतिक को पीजीआई से वीरवार को छुट्टी मिल गई। 17 दिन बाद रेलवे पुलिस (Railway Police) ने ऋतिक के बयान दर्ज किए। सोचिए, एक नौजवान की अचानक ही एक टांग काट दी जाए तो उसको कितना मानसिक आघात पहुंचेगा, लेकिन ऋतिक इस बात से संतुष्ट है कि नवरात्र की पूर्व संध्या पर मासूम कन्याओं के प्राणों की रक्षा करने में सफल रहा। बड़ा सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार ऋतिक की वीरता को पहचान देगी या नहीं। विपक्ष इस पर कुछ बोलेगा या फिर चुनाव में ही व्यस्त रहेगा।
रियल लाइफ के हीरो ऋतिक की वीरता की हर कोई प्रशंसा कर रहा है। मगर चुनाव में व्यस्त नेताओं के पास तो समय ही नहीं है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से ताल्लुक रखने वाला ऋतिक करीब 17 दिन पीजीआई में दाखिल रहा। एक सप्ताह तक तो बैड भी नसीब नहीं हुआ। भारतीय रेलवे (Indian Railway) के अधिकारियों ने भी ये मुनासिब नहीं समझा कि बेशक ही आर्थिक मदद न दें, कम से कम हौंसला बढ़ाकर 12 व 8 साल की बहनों के जीवन की रक्षा करने पर शाबाशी तो दे आएं।
देखना ये होगा कि क्या, अब राज्य सरकार उस कहावत ‘सुबह का भूला, शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते’ को चरितार्थ करती है या नहीं। एक राय के मुताबिक सरकार को ऋतिक की शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी तो देनी ही चाहिए, साथ ही वीरता पुरस्कार के अलावा आर्थिक मदद को भी आगे आना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि सरकार व विपक्ष इस बात का बहाना नहीं बना सकती कि अब तक पता नहीं चला, प्रशासन को भी खबर थी तो मीडिया में भी समाचार प्रकाशित हुए थे।
ये है वीरता की दास्तां…
बात 8 अप्रैल 2024 की है। कालका-शिमला हैरिटेज ट्रैक (Kalka-Shimla Heritage Track) पर 12 वर्षीय दिशा व 8 साल की अनन्या इस बात से बेखबर होकर चल रही थी कि पीछे से अचानक ट्रेन आ सकती है। चंद सेकंड पहले ऋतिक ने संभावित भयावक हादसे को भांप लिया। आव देखा न ताव, अनजान बच्चियों के प्राणों की रक्षा के मकसद से ट्रैक पर कूद गया। बच्चियों को समय रहते ही एक तरफ धकेल कर खुद के प्राण खतरे में डाल दिए। बेशक ही ऋतिक का जीवन बच गया, लेकिन एक टांग हमेशा के लिए चली गई।
कुदरत का फैसला….
कुदरत की पटकथा, कोई नहीं जानता। बच्चियों की मां पर इनके पालन-पोषण का जिम्मा है। पिता का स्नेह दिशा के जन्म के दौरान ही छूट गया था। भाई नहीं है तो कुदरत ने दिशा व अनन्या को भाई के तौर पर ऋतिक को दिया है। बेटियों की मां कृष्णा ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क को बताया कि ऋतिक हमारे परिवार का सदस्य बन गया है।
रेलवे भी लापरवाह…
ऐसे हादसों पर रेलवे पल्ला झाड़ता रहता है। सवाल ये भी है कि रेलवे ने हैरिटेज ट्रैक को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से क्या कदम उठाए हैं। 22 अप्रैल की बात है, शिमला से कालका जाने वाली ट्रेन को सोलन स्टेशन पर 2 बजे पहुंचना था। लेकिन, ये 40 से 45 मिनट लेट थी। पहला व आखिरी डिब्बा सामान्य था। ऑन स्पाॅट केवल सामान्य टिकट दिया जाता है। ट्रेन लेट पहुंची तो इसे आगे खिसकने की जल्दी थी। टोकन भी लोको पायलट को सीट पर ही दे दिया गया।
आखिरी डिब्बे में चढ़ने वाले यात्री ट्रैक पर ही थे कि ट्रेन चल पड़ी। दूसरी बात ये भी है कि यात्रियों के चलने के लिए रास्ता भी नहीं है। ट्रेन का आगमन भी बीच वाले ट्रैक पर हुआ। यानि, यात्रियों के ट्रैक में उलझने की आशंका भी बनी रहती है।
बेशक ही रेलवे ये दलीलें देता रहे कि हमारी संपत्ति में ट्रैक पर न चलें। प्रश्न यह भी है कि ट्रैक को सुरक्षित रखने के लिए रेलवे ने क्या कदम उठाए हैं। इस हैरिटेज ट्रैक की देश के अन्य रेलवे लाइनों से तुलना नहीं की जा सकती। बताया जा रहा है कि 8 अप्रैल को कालका-शिमला ट्रेन भी लेट थी।
@R1