नाहन/कामिनी ठाकुर : होली का त्यौहार रंगों और हंसी ख़ुशी का त्यौहार है। आपने इस दौरान कइयों को कहते भी सुना होगा कि “बुरा न मानो होली है” इसी तथ्य की सार्थकता पर होली का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने मनमुटाव भुला के एक दूसरे को रंग लगाकर बधाई देते हैं। होली का त्यौहार है फाल्गुन मास में मनाया जाता है
होली का पर्व भारतीय और नेपाली मूल में मनाया जाता है। होली कई नामों से प्रख्यात है, जैसे होली, होलिका या होलाका। प्राचीन काल में लोग चन्दन और गुलाल से ही होली खेलते थे। समय के साथ इनमें भी बदलाव देखने को मिला है। कई लोगों द्वारा प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे त्वचा या आँखों पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े।
कब और क्यों मनाया जाता है “होली का त्यौहार”
होली का त्यौहार फाल्गुन मास में मनाया जाता है। परम्पराओं के अनुसार वैसे तो होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही शुरू हो जाता है उसी दिन होली का पहला गुलाल उड़ाया जाता है। फाल्गुन मास में खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। इसी तरह होली की कई कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि होली का त्यौहार देवी- देवताओं द्वारा भी मनाया जाता था।
शिव पुराण के अनुसार, शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे और हिमालय की पुत्री पार्वती भी शिव से विवाह करने के लिए कठोर तप कर रही थीं। शिव-पार्वती के विवाह में इंद्र का स्वार्थ छिपा था, क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के द्वारा होना था। इसी कारण इंद्र ने शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा परन्तु शिव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था। लेकिन शिव जी की तपस्या भंग हो गई थी और देवताओं ने शिव जी को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया था। इस कथा के आधार पर होली को सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
होली का सार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है रंगों वाला होली का त्यौहार। श्री कृष्ण लीला का एक अंग बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना भी माना गया है। इसलिए मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव में लठमार होली खेली जाती है।
होली से पहले क्यों मनाया जाता है “होलिका दहन”
होली के पर्व से जुड़ी कई कहानियां है। लेकिन हिरण्यकश्यप और विष्णु भक्त प्रहलाद की कहानी प्रख्यात है। होली के पहले दिन होलिका दहन भी मनाया जाता है। जिसके पीछे एक भक्त और नास्तिक राक्षस की कहानी है। प्राचीन काल में हिरण्य कश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था, वह अपनी ताकत और अहंकार में स्वयं को ही ईश्वर मानता था। राज्य में भगवान का नाम लेने पर भी पाबंदी लगाई हुई थी। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। प्रहलाद की इस ईश्वर भक्ति के कारण हिरण्यकश्यप ने उसे कई बार दंड दिए, लेकिन प्रहलाद की रक्षा में भगवान विष्णु हमेशा रहते थे।
हिरण्यकश्यप की छोटी बहन का नाम होलिका था, उसको वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। एक बार हिरण्यकश्यप को इस वरदान का फायदा उठाने का ख्याल आया, उसने आदेश दिया कि होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठेगी, क्योंकि ऐसा करने से होलिका को कुछ भी नहीं होगा लेकिन प्रहलाद की मौत हो जाएगी। हिरण्यकश्यप के आदेश पर बहुत सी लकड़ियां एकत्रित कर उसपर होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई। लकड़ियों में आग लगा दी गई, लेकिन आग में बैठने पर होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।
उसके बाद हिरण्यकश्यप ने गुस्से में आकर प्रहलाद को स्वयं जान से मारने का प्रयास किया और प्रहलाद पर कई वार किए। फिर उसने प्रहलाद से कहा कि बता तेरा भगवान कहां है। उसके जवाब में प्रहलाद ने उत्तर दिया कि भगवान तो कण-कण में वास करते हैं। तभी हिरण्यकश्यप ने कहा कि क्या तेरा भगवान इस महल के स्तंभ में है। प्रहलाद ने उत्तर दिया, हां मेरा भगवान उसमें भी हैं। तभी हिरण्यकश्यप ने अपनी गदा से उस स्तंभ पर वार किया और स्तंभ टूट गया, लेकिन उसी स्तंभ से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इसके लिए भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।
होली के प्रमुख पकवान
वैसे तो होली के त्यौहार पर कई तरह के मिष्ठान व पकवान बनाए जाते है, लेकिन गुजिया होली का प्रमुख पकवान है, जोकि मावा, खोया और मैदा से बनता है। इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहां उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन खीर, पूरी व पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयां बनाई जाती हैं, जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।