संगड़ाह, 25 मार्च : सिरमौर जनपद के सैनधार क्षेत्र के मानरिया के मड़ीधार में माता मनसा देवी का मंदिर समस्त सैनधार वासियों की श्रद्धा का केंद्र है। माता मनसा देवी को क्षेत्र में कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। यह धार समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जहां पर माता मनसा देवी का भव्य मंदिर है। इस मंदिर से चूड़धार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य और गिरिपार का सुंदर नजारा दिखाई देता है।
जानकारी के अनुसार यह मंदिर 1400 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है। मंदिर के मूल रूप से कोई छेड़छाड़ किए बिना 108 फीट ऊंचे गुंबद का निर्माण किया गया है, इससे मंदिर की सुंदरता और अधिक बढ़ गई है। इस मंदिर में काले रंग के पत्थर पर तराशी करके माता मनसा देवी, शेष शैय्या पर लेटे हुए विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी उनके चरण दबाते हुए दिखाया गया है। मंदिर में गणपति महाराज, काली माता सहित कई प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं।
बता दें कि इस प्रकार की मूर्तियां आसपास के क्षेत्रों के मंदिरों में देखने को नहीं मिलती हैं। इस मंदिर से लगभग आधा किमी दूर दो प्राचीन बावड़ियां भी मौजूद हैं, जिनका जल श्रद्धालुओं को शीतलता प्रदान करता है। स्थानीय निवासियों के मुताबिक पहले इस स्थान पर जल का कोई स्रोत नहीं था। प्राचीन समय में मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए नहर सबार गांव से करीब एक घंटे की चढ़ाई करके पुजारी यहां आते थे। वो अपने साथ तुंबडी में जल भरकर साथ लाते थे और उसे देव कार्य में इस्तेमाल करते थे। एक दिन जब वो जल लेकर आ रहे थे, तो एक स्थान पर आराम करने के लिए रुके तो किसी कारणवश जल से भरी उनकी तुंबडी गिर गई थी और पानी भी गिर चुका था। इस पर पुजारी चिंतित हो गए और सोच में पड़ गए कि बिना जल से आज पूजा कैसे होगी। इसी सोच में उन्हें पेड़ की छांव में नींद आ गई। नींद में माता ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि जहां तुम लेटे हो वही खुदाई करो, तुम्हें पानी मिल जाएगा।
पुजारियों ने जैसे ही खुदाई की तो वहां उन्हें जल का स्रोत मिला। बाद में वहां पर दो बावड़ियों का निर्माण किया गया। एक बावड़ी के जल का प्रयोग केवल देवकार्य के लिए ही किया जाता है, जबकि दूसरी बावड़ी के जल का प्रयोग श्रद्धालु करते हैं। स्थानीय श्रद्धालुओं का मानना है कि इस बावड़ी में कभी भी जल की कमी नहीं होती। यह तीर्थ स्थान सराहां से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है। प्रत्येक माह की संक्रांति को मंदिर में भंडारे का आयोजन किया जाता है।