शिमला, 8 मई : लगभग डेढ़ साल बाद सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र में मामूली अंतर से जीते राजेंद्र राणा के इस्तीफे के चलते उप चुनाव होने जा रहा है। फर्क इतना है कि राणा पहले कांग्रेस के टिकट पर 2022 में मात्र 2.99 % मतों के अंतर से जीते थे। अब वह भाजपा के टिकट पर उप चुनाव में उतरे हैं। वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे रणजीत राणा इस दफा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। 2022 के चुनाव में राजेंद्र राणा को 27,679 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी के रणजीत सिंह राणा को 27, 280 मत प्राप्त हुए थे। जीत का अंतर मात्र 299 वोट का रहा था। यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का गृह क्षेत्र है।
दिलचस्प ये है कि 2017 में यहां के मतदाताओं ने भाजपा के सीएम कैंडिडेट को ही हराकर देश की राजनीति को अचंभित कर दिया था। 2017 में धूमल को हराने वाले राजेंद्र राणा बीजेपी प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे हैं। दोनों राणा कभी पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नजदीकी रहे हैं।
2012 में पुनर्सीमांकन के बाद बमसन का अधिकतर इलाका सुजानपुर निर्वाचन क्षेत्र में शामिल हुआ। ऐसा माना जाता है कि बमसन में प्रदेश के सबसे अधिक सैनिक व पूर्व फौजी हैं।
2017 का रोचक पहलू… चुनाव में धूमल 1919 मतों के अंतर से हारे थे। नोटा सहित अन्य प्रत्याशियों को कुल 2,042 वोट प्राप्त हुए थे। सीपीएम के प्रत्याशी ने 1,023 मत प्राप्त किए थे। 2,042 में से 1,920 वोट धूमल को पड़ जाते तो समीकरण कुछ और होता।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के मौजूदा प्रत्याशी राजेंद्र राणा ने 2012 के चुनाव में बतौर आजाद उम्मीदवार एक शानदार जीत हासिल की थी। राणा के खिलाफ भाजपा तो फाइट में ही नजर नहीं आई थी, जबकि कांग्रेस की निकटतम प्रत्याशी अनीता वर्मा को 14,166 मतों के अंतर से हराकर 55.02 प्रतिशत का वोट शेयर प्राप्त किया था।
2007 के चुनाव में धूमल ने 35,404 मतों का बड़ा आंकड़ा हासिल किया था। कांग्रेस 9,047 पर अटक गई थी। अब ये धूमल की बैड लक थी या राणा की गुडलक, 2012 में धूमल हमीरपुर विधानसभा में शिफ्ट हो गए। हालांकि, वहां से भी जीते, लेकिन इधर राणा को पांव जमाने का मौका मिल गया। कांग्रेस 23.43 पर सिमटी तो भाजपा का ग्राफ शर्मनाक स्थिति में पहुंच गया।
बेशक ही इस निर्वाचन क्षेत्र में जंग रणजीत सिंह व राजेंद्र राणा के बीच होगी, मगर धूमल लाजमी तौर पर जिसे समर्थन करेंगे, उसका बेड़ा पार हो सकता है।
उप चुनाव की नौबत इसलिए आई क्योंकि राजेंद्र राणा को पहले तो कैबिनेट में स्थान नहीं मिला, दूसरा उनका आरोप था कि उनके क्षेत्र में मुख्यमंत्री सुक्खू विकास कार्यों में अड़ंगा लगाकर उनकी व्यक्तिगत उपेक्षा भी कर रहे हैं। इसी के चलते राणा ने राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग की। उसके बाद राणा सहित पांच अन्य विधायक भाजपा की सदस्यता लेकर कांग्रेस को अलविदा कह गए। कांग्रेस से आए सभी विधायकों को भाजपा ने हाथों हाथ लेकर उन्हें विधानसभा उप चुनाव में पार्टी का टिकट भी थमा दिया।
इसके तुरंत बाद राजेंद्र राणा पूर्व मुख्यमंत्री व उनके प्रतिद्वंदी रहे प्रेम कुमार धूमल से मिलने उनके निवास स्थान पर पहुंचे। काबिले जिक्र है कि कांग्रेस के भावी प्रत्याशी रणजीत राणा भी धूमल के खासमखास रहे हैं। इस क्षेत्र में भी कांग्रेस व भाजपा दोनों दलों के वर्करों को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह किसके पक्ष में प्रचार करेंगे। भाजपा के कई पदाधिकारियों ने राणा की भाजपा उम्मीदवारी को लेकर इस्तीफा भी दे दिया था।
हालांकि, राजेंद्र राणा उसी दिन से चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। मगर इस बार उनकी चुनावी डगर बहुत मुश्किल है। बदले हुए हालात में व्यक्तिगत रूप से जुड़े कार्यकर्ताओं का तो विश्वास किया जा सकता है, मगर जिनकी निष्ठाएं पार्टी से जुड़ी हैं, उनके सामने राजनीतिक धर्मसंकट खड़ा हो गया है। ये दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के समक्ष हो रहा है। वह असमंजस की स्थिति में हैं। इस सीट पर 2014 से अब तक सारे मुकाबले बेहद नजदीकी रहे हैं। 2014 में भाजपा के नरेंद्र ठाकुर ने कांग्रेस की अनीता कुमारी राणा को मात्र 538 वोटों से हराया था।
वहीं, 2017 के दिलचस्प मुकाबले में राजेंद्र राणा ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को 1919 मतों से हराया था। इस विधानसभा क्षेत्र में अधिकतर वोटर पूर्व सैनिक हैं। अग्निवीर का मुद्दा भी भाजपा के खिलाफ जा सकता है। वहीं, राणा को भाजपा के अंदर अंतर्विरोध का सामना भी करना पड़ेगा। जिसके चलते इस उप चुनाव में राणा को जीतने के लिए भरी मशक्क्त का सामना करना पड़ेगा। वहीं रणजीत राणा के लिए यह उप चुनाव एक अवसर लेकर आया है।
अब देखना है कि वह अचानक मिले इस अवसर को जीत में भुना सकते हैं या नहीं। सुजानपुर निर्वाचन क्षेत्र में राजेंद्र राणा के साथ बहुत से परिवारों की निजी निष्ठाएं जुडी हैं, जिसके चलते वह लगातार दो चुनाव जीतने में सफल रहे। क्या, इस उप चुनाव में राणा अपने व्यक्तिगत वोट बैंक को सुरक्षित रख पाएंगे, यहीं उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है।
लोगों ने जैसे विकास की उम्मीद लगाई थी, अभी तक इस क्षेत्र में उतना विकास नहीं हो पाया है। लोकसभा चुनाव साथ होने के कारण यहां एक नारा यह भी चल रहा है कि केंद्र का वोट मोदी को, तो विधानसभा का वोट सुक्खू को। सुक्खू भी राजेंद्र राणा की दगा को लेकर बेहद नाराज हैं। चूंकि वह हमीरपुर जिला से संबंध रखते हैं, इसलिए वह राजेंद्र राणा को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे।
कुल मिलकर मुकाबला बेहद दिलचस्प, नजदीकी व रोचक होने की उम्मीद है। राजेंद्र राणा राजनीतिक कौशल में तो खिलाड़ी रहे हैं मगर देखना है वो अपने इस किले को क्या सुरक्षित रख पाएंगे या कांग्रेस के खिलाफ जाने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा।
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