नाहन, 26 जून : हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जनपद की नाहन विकास खंड की विक्रमबाग पंचायत में कौंथरों के युवक ‘मोहम्मद अली’ ने जीवन के अंतिम मुकाम को कड़े परिश्रम की बदौलत हासिल करने में सफलता पाई है। पिता के इंतकाल के बाद मोहम्मद अली (34) ने दिहाड़ी व मजदूरी कर खुद को इस काबिल बनाया कि वो दो बहनों की शादी कर सके।
हाल ही में हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (HPPSC) द्वारा जारी परिणाम में मोहम्मद अली का चयन कॉलेज कैडर में सहायक प्रोफैसर (Assitant Professor) के पद पर हुआ है। मोहम्मद अली को ये सफलता आसानी से नहीं मिली। इसके पीछे लंबे संघर्ष की दास्तां छिपी है। पहले 2014 में जेबीटी का पद हासिल किया। इसके बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाया। सात साल तक ट्रांसगिरि के रिमोट इलाके में प्राथमिक शिक्षा की अलख जगाते रहे। दुर्गम इलाकों में शिक्षक जाने को तैयार नहीं होते, लेकिन मोहम्मद अली ने लंबी तैनाती में भी उफ्फ नहीं की।
बकरास शिक्षा खंड की दिगवा प्राथमिक पाठशाला में तैनात रहे। 2019 में सफलता का दूसरा पड़ाव हासिल करते हुए टीजीटी बन गए। रिमोट गांव से इतना लगाव था कि वो 2019 से 2021 तक भी बतौर टीजीटी दिगवा में ही सेवारत रहे। तीसरी सफलता में दिसंबर 2021 में हिन्दी विषय के स्कूल प्रवक्ता बने।
बतौर स्कूल लेक्चरर भी पहाड़ी क्षेत्र भवाई में पहली पोस्टिंग मिली। इसके बाद राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बर्मापापड़ी में स्थानांतरित हुए। सहायक प्रोफैसर बने मोहम्मद अली ने दो बार सैट की परीक्षा उत्तीर्ण की है। एक बार ओबीसी कैटेगरी में सफलता पाई तो दूसरी बार सामान्य वर्ग में सैट की परीक्षा को उत्तीर्ण किया।
जेबीटी व टीजीटी के पदों पर सात साल के तजुर्बे के बाद मातृभाषा हिन्दी के सहायक प्रोफैसर बने हैं। परिवार में बूढ़ी मां के अलावा जुड़वा बच्चे हैं। पत्नी तबस्सुम मौजूदा में वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला नैनाटिक्कर में बतौर टीजीटी कार्यरत है। शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला से जमा दो की पढ़ाई करने के बाद जेबीटी का डिप्लोमा प्राप्त किया। एमए व बीएड की शिक्षा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (HPU) से प्राप्त की है।
गौरतलब है कि 2007 में मोहम्मद अली के पिता का निधन उस समय हो गया था, जब वो 12वीं कक्षा का छात्र था। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में मोहम्मद अली का कहना था कि हमें हताश होकर नहीं बैठना चाहिए। कई बार ऐसा लगता था कि टीजीटी की नौकरी मिली हुई है। अब आगे खुद को प्रतियोगी परीक्षाओं के झंझट में क्यों धकेलना, लेकिन मन में बार-बार ये विचार कौंधता था कि अंतिम लक्ष्य असिस्टेंट प्रोफैसर बनना है, इसे हासिल करना ही है।
उन्होंने बताया कि पिता के निधन के बाद लगातार सात साल तक मजदूरी के साथ-साथ पढ़ाई को जारी रखा। जेबीटी का पद मिलने के बाद घर की आर्थिक स्थिति को सहारा मिला। नौकरी मिलने के बाद दो बहनों की शादी की। छोटी बहन अविवाहित है। जुड़वां बेटे दूसरी कक्षा में पढ़ाई कर रहे हैं।