शिमला (शैलेंद्र कालरा): विधानसभा चुनाव के नतीजों से बादल छंट चुके हैं। 44 सीटें जीतकर भाजपा ने सत्ता वापसी कर ली है। लेकिन यह सवाल हर किसी के जहन में बार-बार कौंध रहा है, क्या धूमल को सीएम कैंडीडेट बनाने की वजह से भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला है या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक चला है। 9 नवंबर के मतदान से चंद रोज पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सिरमौर की राजगढ़ रैली में धूमल को सीएम कैंडीडेट बनाने की घोषणा की थी। इस बात का खुलासा अब तक नहीं हुआ है कि क्या धूमल को किसी फार्मूले के तहत कैंडीडेट घोषित किया गया था या नहीं।
अहम बात यह भी चर्चा में है कि धूमल के हारने के साथ-साथ उनके करीबी भी क्यों हार गए। हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन होता है। यह बात फिर दोहराई गई है। लेकिन कांग्रेस के वीरभद्र सिंह जिस तरीके से अकेले शेर की तरह चुनाव प्रचार में दहाड़ रहे थे। उससे यह तो तय है कि भाजपा में चिंता की लकीरें पैदा हुई थी। नजरें इस बात पर भी टिकी हैं कि अब भाजपा किसे मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपेगी। तस्वीर चंद रोज में साफ हो जाएगी।
सबसे अहम बात यह है कि इस बात का अंदाजा कतई भी नहीं लगाया जा रहा था कि धूमल तो हारेंगे ही, साथ ही भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के कई बड़े चेहरे धाराशाही हो जाएंगे।
9 का अंक भी नहीं कर सका करिश्मा…
धूमल के लिए 9 अंक सौभाग्यशाली माना जाता रहा है। मीडिया में चुनाव के पहले दिन से ही इस अंक को लेकर कई तरह की चर्चाएं चली। मसलन 9 तारीख को मत पड़ रहे हैं। मतगणना 18 तारीख को होनी है, जिसका जोड़ भी 9 बनता है। अंक के आधार पर भी धूमल को सीएम बनाया जाने लगा था। लेकिन अब यही अंक धूमल के लिए श्राप साबित हुआ। 1919 मतों से हारे। एक नहीं दो 9 इस आंकड़े में थे। धूमल को चुनाव में 23369 मत पड़े। इसके अंत में भी 9 था। अब माना जा रहा है कि इसी अंक की बदौलत धूमल चमके थे, अब यही अंक अशुभ साबित हुआ।