मंडी, 19 अप्रैल : आईआईटी मंडी ने उर्वरक की एक ऐसी तकनीक को ईजाद किया है, जिसके कम इस्तेमाल के बाद भी वह लंबे समय तक पौधे को पोषण देता रहेगा। इसके लिए आईआईटी मंडी के शोधार्थियों ने बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर -आधारित माइक्रोजेल बनाया है। यह माइक्रोजेल एक तरह का उर्वरक ही है, जिसमें नाइट्रोजन और फास्फोरस की प्रचुर मात्रा मौजूद है। इसे मिट्टी में मिलाकर या फिर पौधों पर छिड़काव करके इस्तेमाल किया जाता है।
यह लंबे समय तक नाइट्रोजन और फास्फोरस को रिलिज करता रहेगा, जिससे पौधे को लंबे समय तक पोषण मिलता रहेगा। पौधा कम उर्वरक के इस्तेमाल में लंबे समय तक सही ढंग से विकसित होगा। अभी आप नाइट्रोजन और फास्फोरस युक्त उर्वरक को इस्तेमाल करते हैं तो वह पानी में जल्दी घुल जाता है और तुरंत प्रभाव से अपना सारा असर पौधे पर छोड़ देता है। ऐसे में मात्र 30 से 50 और 10 से 25 प्रतिशत का लाभ ही पौधे को मिल पाता है। इससे पौधे को उस समय जो पोषण मिलता है वही मिल पाता है, जबकि बाकी समय पोषण देने के लिए अलग से उर्वरकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे धन और समय की बर्बादी के साथ पर्यावरणीय नुकसान भी होता है।
अध्ययन के मकसद को समझाते हुए आईआईटी के स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. गरिमा अग्रवाल ने बताया कि यह माइक्रोजेल पौधों के लिए फास्फोरस के संभावित स्रोत के रूप में काम करते हैं। माइक्रो जेल फॉर्मूलेशन पर्यावरण के अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल है, क्योंकि यह प्राकृतिक पॉलीमर से बना है। नाइट्रोजन और फास्फोरस उर्वरकों की यह निरंतर रिलिज उर्वरक के उपयोग में कटौती करते हुए फसलों को बढ़ने में मदद करती है। इससे सस्टेनेबल कृषि का मार्ग प्रशस्त करने, पोषक तत्वों की आपूर्ति को अनुकूलित करने, फसल की पैदावार बढ़ाने और पारंपरिक उर्वरकों से जुड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों को कम करने के लिए एक आशाजनक मदद मिलेगी।
इस व्यापक शोध के निष्कर्ष अमेरिकन केमिकल सोसायटी के प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुए हैं। शोध कार्य का नेतृत्व डॉ. गरिमा अग्रवाल ने अपनी टीम के साथ किया, जिसमें अंकिता धीमान, पीयूष थापर और डिम्पी भारद्वाज शामिल हैं। अनुसंधान को भारत सरकार के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
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