ऊना, 10 अप्रैल : हिमाचल प्रदेश के ऊना जनपद के भदसाली गांव के रमन कुमार ने दिव्यांग होने के बावजूद प्रगतिशील किसान (progressive farmer) बनकर मिसाल पेश की है। साफ शब्दों के कहे तो रमन ने दिव्यांगता को ही हरा दिया है। रमन कुमार प्राकृतिक खेती ( Natural farming) की विधि से तैयार फसलों से सालाना 4 लाख रुपये का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। साथ ही हर महीने करीब 26 हजार रुपये की राशि मजदूरी में भी खर्च करते हैं।
सड़क हादसे में 14 साल की उम्र में रमन ने एक टांग को खो दिया था, लेकिन जीवन में संघर्ष जारी रखा। दिव्यांग कोटे में सरकारी नौकरी की चाह भी नहीं रखी। मौजूदा में न केवल स्वावलंबी बने हैं, बल्कि रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं। रमन कुमार ने बेरोजगार युवाओं से अपील की है कि वे अपनी नौकरी करने की मानसिकता को बदलकर प्राकृतिक खेती को अपनाकर अधिक से अधिक लाभ उठा सकते हैं।
रमन कुमार बताते हैं कि जब खेती-बाड़ी का कार्य शुरू किया तो वह कैमिकल युक्त खेती करते थे, जिससे फसलों की पैदावार में कमी होने के साथ-साथ खेतों की मिट्टी भी खराब हो रही थी। खेतों में रसायनों का प्रयोग करने से सामान्य वर्षा होने पर भी फसल पानी को सोख नहीं पाती थी और फसलें खराब हो जाती थी।
रमन कुमार कहते हैं कि रसायन युक्त खेती से छुटकारा पाने के लिए प्राकृतिक खेती की ओर रूख किया तथा पालमपुर में प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण लिया। इसके उपरांत 25 बीघा जमीन पर प्राकृतिक खेती करना शुरू किया, जिससे खेतों की मिट्टी सजीव हो उठी है और फसल की पैदावार में बढ़ोतरी हुई तथा कृषि करने की लागत में भी कमी आई है।
ऐसे होती है आमदनी… रमन कुमार अरबी, प्याज व लहसुन की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि ज्यादातर प्राकृतिक उत्पाद वह अपने घर से ही विक्रय कर देते हैं। वर्तमान में रमन कुमार प्याज, फूलगोभी, बंदगोभी, ब्रोकली, बैंगन, टमाटर, गेंदा, शिमला मिर्च व हरी मिर्च की पनीरी भी प्राकृतिक खेती की विधि से तैयार कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती ने बदली दिव्यांग रमन कुमार की तक़दीर, सालाना कमा रहे 4 लाख
रमन कुमार बताते हैं कि प्राकृतिक तरीके से तैयार सब्जियों की पौध घर से ही अच्छे दामों बिक जाती है। रमन कुमार ने प्राकृतिक खेती के साथ साथ देसी गायें भी पाल रखी है, जिसके मल-मूत्र से बनने वाले उर्वरकों का प्रयोग प्राकृतिक खेती में करते हैं। उन्होंने बताया कि देसी गाय खरीदने, संसाधन भंडार और गाय शेड और घोल बनाने के लिए ड्रम भी विभाग द्वारा अनुदान पर उपलब्ध करवाए गए हैं।
रमन कुमार ने बताया कि प्राकृतिक खेती करने के लिए एक माह में लगभग 26 हज़ार रूपये का लेबर खर्च आता है। उन्होंने खेतीबाड़ी का कार्य करने के लिए चार लोगों को भी रोजगार दे रखा है।
ये बोले परियोजना निदेशक…. परियोजना निदेशक आत्मा ऊना संतोष शर्मा ने बताया कि किसानों ने वर्ष 2018 से प्राकृतिक खेती को अपनाना आरंभ किया था। उन्होंने बताया कि सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के अंतर्गत प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को सात दिन का प्रशिक्षण पालमपुर विश्वविद्यालय (Agriculture University Palampur) में दिया जाता है। प्रशिक्षण में किसानों को देसी गाय के गोबर, गौमूत्र व खट्टी लस्सी ने बनाए जाने वाले विभिन्न घटकों बारे बताया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील किसान रमन कुमार ने एक शानदार मिसाल कायम की है।