नाहन, 28 जून : हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Himachal Pradesh Assembly Election 2022) की दहलीज पर पहुंच चुका है। इसी बीच चुनाव को लेकर कई सवालों का जवाब भी तलाशा जाने लगा है। बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा है कि क्या 19 साल पहले की तरह इस बार भी विधानसभा क्षेत्र में एक राजनीतिक वैक्यूम (political vacuum) बन रहा है।
2003 के विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर दिवंगत सदानंद चौहान ने हर किसी को अचंभित कर दिया था। दिवंगत चौहान उस समय 34.93% वोट हासिल करने में कामयाब रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी कुश परमार को 32.07 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी दिवंगत श्याम शर्मा ने 24.2% वोट हासिल किए थे। मुकाबला त्रिकोणीय था। हिमाचल विकास कांग्रेस को 3.8% वोट प्राप्त हुए थे। इसके अलावा तीन अन्य प्रत्याशियों को करीब 5% वोट मिले थे। वोट प्रतिशत 78.21% रही थी।
सवाल यह पैदा हो रहा है कि इस बार क्यों राजनीतिक वैक्यूम बन रहा है। दरअसल मौजूदा विधायक डॉ. राजीव बिंदल दो बार चुनाव जीत चुके हैं। निश्चित तौर पर एंटी इनकंबेंसी (anti incumbency) हो सकती है। उधर, जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो पार्टी में कुछ ठीक नहीं है। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी अजय सोलंकी ने भाजपा प्रत्याशी डॉ. राजीव बिंदल के 51.30 मतों की तुलना में 44.81% वोट हासिल करने में सफलता अर्जित की थी है।
2012 की तुलना में मौजूदा विधायक डॉ बिंदल के वोट बैंक में बड़ी गिरावट दर्ज हुई थी। कांग्रेस खेमे को लेकर बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस वोट परसेंटेज को इस बार भी बरकरार रख पाएगी या नहीं। दूसरी बड़ी बात यह है कि पार्टी के प्रत्याशी रहे अजय सोलंकी व वरिष्ठ नेता कंवर अजय बहादुर सिंह के बीच छत्तीस का आंकड़ा हो चुका है।
प्रदेश निर्माता डॉ. वाईएस परमार के बेटे कुश परमार लंबे अरसे से राजनीति में निष्क्रिय हैं। पूर्व विधायक के बेटे चेतन परमार ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। 2017 की तुलना में इस बार राजनीतिक समीकरण हल्के से इस कारण विभिन्न है, क्योंकि जैसे 19 साल पहले लोक जनशक्ति पार्टी ने जमीन तलाशी थी। वैसे ही अब आम आदमी पार्टी भी दस्तक दे रही है। ये अलग बात है कि पार्टी की विधानसभा क्षेत्र में दमदार चेहरा नहीं मिल पा रहा है।
दीगर है कि चंद रोज पहले नाहन में कांग्रेस की गुटबाजी सड़कों पर पहुंच गई थी, पुलिस को भी मामला दर्ज करना पड़ा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी को सिरमौर कांग्रेस इकाई को भंग करने का फरमान जारी करना पड़ा था।
हालांकि, मतभेद भाजपा में भी पैदा हुए, लेकिन स्थिति नियंत्रण में है। कुछ महीनों में पूरी तस्वीर साफ होने वाली है। 1972 के बाद से यह सीट 5 मर्तबा गैर कांग्रेसी उम्मीदवारों ने जीती है। 2012 में राजीव बिंदल ने कांग्रेस प्रत्याशी कुश परमार को 12,824 मतों के बड़े अंतर से हराया था, लेकिन 2017 में डॉ राजीव बिंदल की जीत का ये अंतर घटकर 3990 रह गया।
नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या कांग्रेस 2017 मैं हासिल प्रतिशतता को इस बार भी बरकरार रख पाएगी या नहीं। वहीं भाजपा 2017 में मिली गिरावट को ऊपर की तरफ ले जाने में सफल होगी या नहीं।