शिमला, 3 दिसंबर : बेशक ही कोविड ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों (International Flights) को अब तक रद्द कर रखा हो, लेकिन परिंदों (Birds) को कोई सरहदों (Borders) में नहीं बांध सकता। पौंग झील की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के रिंगिंग स्टेशन (Ringing Station) के जरिए 29 प्रजातियों के 140 परिंदों को एक खास तरह की रिंग पहनाई गई है। इसमें 50 से 70 प्रतिशत वो परिंदें हैं, जो हजारों किलोमीटर की उड़ान भरने के बाद झील में अठखेलियां कर रहे हैं।
ये विशेष अभियान 27 नवंबर 2021 से एक दिसंबर 2021 तक चलाया गया। परिंदों को रिंगिग के मकसद से पकड़ने के लिए 19 घौंसलों (Mist Nests) का इस्तेमाल किया गया। लाजमी तौर पर आपके जहन में एक सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर इन रिंग को पहनाने से होगा क्या। दरअसल, आने वाले वक्त में इन्हीं रिंगस के माध्यम से पक्षियों की उम्र, पंखों की लंबाई (Wings Length), माॅल्टिंग पैटर्न (Molting Pattern) व मांसपेशियों (Muscles) इत्यादि से जुड़ी जानकारी हासिल हो सकती है। मसलन, अगर एक रिंग पहने परिंदा कुछ सालों बाद दोबारा कैप्चर (Capture) होता है तो पहले उपलब्ध डाटा से उसकी तुलना के आधार पर अध्ययन (Study) किया जा सकता है।
बता दें कि चंद साल पहले पौंग झील के क्षेत्र में ही उत्तर भारत का पहला स्थाई बर्ड रिंगिंग स्टेशन (Bird Ringing Station) स्थापित किया गया था। परिंदों को रिंग पहनाने की खास मुहिम में वाइल्ड लाइफ के डीएफओ (DFO Wild Life) राहुल रोहाणे ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में डीएफओ ने कहा कि रिंगिंग से पक्षियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इससे प्रवासी पक्षियों के मार्ग का भी अध्ययन किया जा सकता है। पक्षियों का नजदीक से निरीक्षण करने पर उसकी पहचान व आवास के अध्ययन में भी मदद मिलती है। इसमें कैप्चर व रि कैप्चर प्रणाली का इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा कि सबसे अहम बात है कि डाटा के आधार पर पक्षियों की प्रजातियों व आवास का बेहतर संरक्षण करने में विभाग को मदद मिलती है।
उन्होंने कहा कि रिंगिंग अभियान को नगरोटा सूरियां क्षेत्र में चलाया गया था। गौरतलब है पौंग वैटलैंड में हर साल हजारों की तादाद में विदेशी परिंदें पहुंचते हैं। इसके अलावा देश के अन्य इलाकों से भी पक्षियों की कई प्रजातियां यहां पहुंचती हैं। स्थाई रिंगिंग स्टेशन द्वारा परिंदों की गतिविधियों को एडवांस प्रणाली (advance system) के माध्यम से डाटा बेस तैयार किया जाता है। ये भी बताते हैं कि हिमालयन रेंज में अपनी तरह का ये पहला परमानेंट रिंगिंग स्टेशन था। बता दें कि विदेशी परिंदों की जनगणना की अलग प्रक्रिया है।