शिमला, 30 सितंबर : कूल्लू के मलाणा की भांति क्योंथल क्षेत्र की देव समाज प्रथा में राजा का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। सन् 1948 में रियासतों के विलय होने के उपरांत भी इस क्षेत्र में रियासती शासक व देवताओं से जुड़ी अनेक मान्यता आज भी प्रचलित है, जिसमें राजा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। तत्कालीन क्योंथल रियासत के राजा को लोग अतीत से ही अपना चौथा इष्ट मानते हैं, अर्थात राजा की आज भी देवता स्वरूप अराधना की जाती हैं।
क्षेत्र के पीठासीन देवता जुन्गा का प्रादुर्भाव रियासत के सेन वंशज से हुआ था, जिस वजह से राजा का स्थान देवता से ऊपर माना जाता है। क्षेत्र के लोग आज भी अपने इष्ट राजा की बराबरी में नहीं बैठते हैं। अनेकों बार जब देवता संबंधी कई विवाद उत्पन्न हो जाते हैं, उस स्थिति में लोगों की अंतिम अपील राजा के दरबार में होती है। राजा का दिया निर्णय सर्वमान्य माना जाता है।
बता दें कि बीते कल इस रियासत के राजा वीर विक्रम सेन का निधन हुआ, जिससे समूचे क्योंथल क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई। निधन की सूचना सुनते ही जनसैलाब अंतिम दर्शन क लिए उमड़ पड़ा। देव जुन्गा अर्थात 22 देवता के प्रमुख मंदिर पुजारली के पुजारी एवं गुर रामकृष्ण शर्मा का कहना है कि देवता के निधन से समूचे क्योंथल क्षेत्र में एक वर्ष तक शोक रखा जाएगा। इस दौरान कोई भी त्यौहार तथा देव संबधी कार्य नहीं होंगे। इनका कहना है कि क्षेत्र में राजा को चौथा इष्ट आज भी माना जाता है। इसके अतिरिक्त तीन इष्ट देव जुन्गा, माता तारा देवी और हनुमान कशाला शोधी को माने जाते हैं। माता तारा देवी क्योंथल रियासत के शासकों की कुलदेवी है।
गजेटियर के अनुसार वीर विक्रम सेन क्योंथल रियासत के 78वें शासक रहे। रियासती परंपरा के अनुसार राजा के निधन होने पर गद्दी खाली नहीं रखी जाती है। वीर विक्रम सेन की अंतिम यात्रा से पहले उनके पुत्र खुश विक्रम सेन को वेदोक्त मंत्र के साथ उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया। वीर विक्रम सेन को बीते 13 दिसंबर 2002 को रियासत के राजा हितेंद्र सेन के निधन पर राजगद्दी सौंपी गई थी।
खुश विक्रमसेन का जन्म 3 अप्रैल 1997 को हुआ है, जो इन दिनों एमिटी विश्वविद्यालय दिल्ली में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वीर विक्रम सेन की अंतिम यात्रा रियासती परंपरा के अनुसार निकाली गई, जिसमें सबसे आगे उनके इष्ट ध्वज, छड़ी व राजगददी पर रखे जाने वाला छत्र के अतिरिक्त ढोल पर अढाई ताल बजाते हुए निकाली गई। बता दें कि वीर विक्रम सेन की रानी विजय ज्योति सेन बीते विधान सभा चुनाव के दौरान कसुंपटी से भाजपा प्रत्याशी रही है।
राज परिवार के कंवर गिरिराज सिंह जोकि लॉ ऑफिसर हैं, ने बताया कि तत्कालीन क्योंथल रियासत दक्षिण में मनीमाजरा और पूर्व में रावी पुन्नर तक फैली हुई थी। इस रियासत के अधीन 18 ठकुराईयां आती थी। समूचे क्योंथल क्षेत्र में देव जुन्गा के मंदिर विराजमान है। उन्होंने बताया कि इस वंशज के प्रथम शासक गिरिसेन थे, जोकि नादौन से आए थे। पंकज सेन ने बताया कि कालांतर में क्योंथल रियासत का मुख्यालय पुराना जुन्गा में हुआ करता था। जहां पर राजा की गद्दी आज भी विराजमान है। वर्ष 1927 में इसे वर्ष स्थानांतरित करके नए जुन्गा लाया गया था।
तारा देवी मंदिर के पुजारी श्याम लाल का कहना है कि वर्ष में पड़ने वाली चार साजी को राजा अपने परिवार सहित तारादेवी में अपनी कुलजा की पूजा करते हैं।