सोलन, 28 जुलाई : तमिलनाडू के अन्नामलाई के जंगलों में स्थित सैनिक स्कूल में 90 के दशक में एक होनहार (Promising) लड़का पढ़ा करता था। राज्य की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी भी स्कूल के नजदीक ही थी। स्कूली वक्त में लड़के के मन में जंगलों व वन्यजीवों (wildlife) के प्रति ऐसा जुनून पैदा हुआ कि जब पढ़ते-पढ़ते समझ आई तो कैरियर का लक्ष्य भारतीय वन सेवा को निर्धारित कर लिया। 7 अक्तूबर 1982 को जन्में ई विक्रम के जीवन में 2005 में वो पल आ गए, जिसका वो स्कूल के वक्त से ही सपना संजोए हुए थे। यानि पहली ही कोशिश में आईएफएस (IFS) बनने का गौरव मात्र 23 साल की उम्र में हासिल कर लिया था।
यूपीएससी (UPSC) द्वारा आयोजित भारतीय वन सेवा की परीक्षा में पांचवा रैंक हासिल हो गया था। इस समय सोलन में वन अरण्यपाल के पद पर तैनात हैं। बता दें कि करीब दो साल पहले ही सोलन वन वृत वजूद में आया है। यही कारण है कि उनके सामने इस वृत को स्ट्रीम लाइन (stream line) करने की भी चुनौती है। तमिलनाडू में अब अन्नामलाई की उस वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को टाइगर रिजर्व (tiger reserve) का दर्जा दे दिया गया है, जिसके समीप रहकर ही ई विक्रम ने एक भारतीय वन सेवा अधिकारी (Indian Forest Service Officer) बनने का सपना संजोया था।
ये खास…
आईएएस व आईपीएस (IAS & IPS)की तरह आईएफएस में प्रमोशन (promotion)का चैनल धीमा है। बावजूद इसके वो 39 साल की उम्र पूरा करने से पहले ही वन अरण्यपाल के पद पर पहुंच गए हैं। ऐसी भी संभावना है कि वो देश के सबसे यंग कंजरवेटर ऑफ फाॅरेस्ट (conservator of forest) हो सकते हैं। हिमाचल का कैडर मिलने के बाद उन्होंने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में डीएफओ (DFO) के पद पर भी सेवाएं दी। इसके बाद वो 2014 में सैंट्रल डैपुटेशन (central deputation) पर चले गए थे।
हालांकि बतौर वर्किंग वन अरण्यपाल ई विक्रम की प्रमोशन लगभग एक साल पहले हो गई थी। मगर फील्ड में इस पद पर पहली पोस्टिंग (First Posting) मिली है। अमूमन इतनी कम उम्र में इस ओहदे तक पहुंचना आसान नहीं होता, जबकि आईएएस व आईपीएस के कैडर में 16 साल के कैरियर (Carrier) में कई शीर्ष ओहदों तक पहुंचा जा सकता है।
एक सवाल….
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने एक सीधा सवाल आईएफएस (IFS) ई विक्रम से किया। पूछा गया, जब आप आईएफएस की परीक्षा पांचवा रैंक हासिल कर उत्तीर्ण कर सकते थे तो दूसरे चांस में आईएएस या आईपीएस बनने की कोशिश क्यों नहीं की तो तपाक से उन्होंने अपने स्कूली समय का राज खोला। उन्होंने कहा कि ये सवाल उनसे पहले भी कई बार पूछा जा चुका है।
युवा वन अरण्यपाल ने कहा कि अन्नामलाई की पहाड़ियां व जंगल (Hills and forests)से उन्हें बेहद ही लगाव था। सैनिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान अक्सर ही वाइल्ड लाइफ सेंचुरी आकर्षित करती थी। यहीं से जंगलों व वन्यजीवों का रक्षक बनने की ठान ली थी। उनका ये भी कहना था कि अक्सर ही सैनिक स्कूल (Military school) से पढ़े बच्चों के बारे में एक विचार रहता है कि वो सैन्य अधिकारी (military officer) की बनेंगे, लेकिन उनका बचपन से ही कैरियर चुनाव अलग था।
ये है पढ़ाई से अब तक का सफर…
चूंकि बचपन से ही आईएफएस बनने का लक्ष्य (Aim) निर्धारित कर चुके थे, लिहाजा पढ़ाई भी इसी क्षेत्र में की। वानिकी में बीएससी (BSc) करने के बाद एमएससी (MSc) भी इसी क्षेत्र में की। एमएससी करने तक वो परीक्षा के लिए योग्य हो गए। आईएफएस बनने के बाद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान भी खासा तजुर्बा हासिल किया। पर्यावरण मंत्रालय में सहायक इंस्पेक्टर जनरल ऑफ फाॅरेस्ट (Assistant Inspector General of Forest) रहे। यूएनडीपी में प्रोजैक्ट मैनेजर भी तैनात रहे।
हिमाचल के विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण राज्य परिषद (State Council of Science, Technology and Environment) में बतौर मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी व संयुक्त सदस्य सचिव के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं। भरमौर के अलावा शिमला वाइल्ड लाइफ डिवीजन (Wildlife Division) में डीएफओ रहे। हिमाचल के ग्रीन इंडिया मिशन (Green India Mission) में भी हिस्सेदारी रही। विश्व बैंक द्वारा पोषित मिड हिमालय वाटर शैड प्रोजैक्ट (Mid Himalaya Watershed Project) में भी सेवाएं दी। खास बात यह है कि उनकी विशेषता रिमोट सेंसिंग व जंगलों की जीआईएस प्रबंधन में है। इसके अलावा जंगलों की आग के प्रबंधन व कार्बन स्टडी में भी महारत रखते हैं।
पत्नी भी कंजरवेटर…
हाल ही में एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने अपने पाठकों को इस बात से अवगत करवाया था कि सिरमौर को पहली लेडी कंजरवेटर (lady conservator) के तौर पर सरिता कुमारी मिली है। अब आपको बता दें कि सोलन के अरण्यपाल की वो अर्द्धांगिनी हैं। यानि हिमाचल में दो अलग-अलग वन वृतों में पति-पत्नी अरण्यपाल की जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। ये दंपत्ति कुछ अरसा पहले ही केंद्र की प्रतिनियुक्ति से वापस हिमाचल लौटा था।