शिमला, 11 मार्च : हिमाचल के रोहडू उपमंडल के बराल गांव का 37 वर्षीय सुरेश कुमार (डिंपल पांजटा) एक मिसाल बन गया है। इंडियन काउंसिल फाॅर एग्रीकल्चर रिसर्च (Indian Council for Agriculture Research) ने एग्री विजन(Agri Vision) 2021 में सुरेश को देश के उन पांच यूथ आइकन(Youth Icon) की सूचि में स्थान दिया है, जिन्होंने कृषि या बागवानी के क्षेत्र में बेमिसाल उदहारण पेश किया है।
बता दें कि सुरेश राज्य से पहला किसान है, जिसे रोल माॅडल (Role Model) के तौर पर देश में पहचान मिली है। 6 मार्च को कार्यक्रम का उदघाटन देश के कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किया था। पांचवे राष्ट्रीय सम्मेलन में सुरेश को सम्मानित भी किया गया।
लाजमी तौर पर आपके जहन में ये सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर सुरेश ने ऐसा क्या किया कि उसे देश भर में पहचान हासिल हुई है। दरअसल, सुरेश ने सेब की पैदावार को कई गुणा तक बढ़ाने को लेकर जागरूकता की एक अलख जगाई है।
पहले एक हैक्टेयर भूमि में 7 से 8 मिट्रिक टन सेब (Apple) की फसल (Crop) मिलती थी, मगर अब बागवान 70 से 80 मिट्रिक टन तक फसल हासिल कर सकते है। विदेशों की तर्ज पर उत्पादन होने लगा है।
कहते हैं, आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। आर्टस (Arts) में साधारण तरीके से ग्रैजुएशन (Graduation) करने वाले सुरेश के पास खुद की मात्र एक हैक्टेयर भूमि थी। वो दिन-रात इस सोच में लगे रहे कि ज्यादा उत्पादन कैसे हासिल किया जा सकता है। मेहनत रंग लाई। अपने तजुर्बे से इसे 10 गुणा तक बढ़ा लिया।
मन में ये विचार कौंधा कि क्यों न अपने ज्ञान (Knowledge) को अन्य बागवानों से भी बांटा जाए। इसके लिए सुरेश ने एक एनजीओ भी बना ली है। वो राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बागवानों के पास पहुंचकर टिप्स देते हैं, ताकि उत्पादन में इजाफा हो जाए।
एमबीएम न्यूज से बातचीत में सुरेश का कहना था कि विदेशों (Foreign) में एक हैक्टेयर भूमि में 60 से 70 मिट्रिक टन फसल ली जाती है। यही बात उनके मन में घर कर गई थी कि यहां ऐसा क्यों नहीं हो सकता। पौधों (Plants) की प्रूनिंग व न्यूट्रिशियन पर ध्यान केंद्रित किया तो नतीजे सामने आने लगे। उन्होंने कहा कि वे इस बात से बेहद ही खुश हैं कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर(National Level) पर उत्साहवर्द्धन किया गया है।
उनका कहना था कि वो अपनी सेवाएं निशुल्क (Free Services) प्रदान करते हैं। सुरेश ने कहा कि सोशल मीडिया(Social Media) के माध्यम से बागवानों को जागरूक करने से काफी अच्छे परिणाम सामने आए। उनका कहना था कि वो उत्तराखंड में भी बागवानों की मदद कर रहे हैं।