नाहन, 11 मार्च: स्थापना के 400 साल पूरा कर चुके नाहन शहर की पहचान प्राचीन मंदिरों से भी राष्ट्रीय पटल पर होती है। हर कोई इस बात से तो बखूबी वाकिफ है कि रानीताल व पक्का तालाब के किनारे शिवालयों की स्थापना रियासतकाल के वक्त हुई थी। लेकिन मौजूदा युवा पीढ़ी इसके इतिहास से अनभिज्ञ है। चलिए शिवरात्रि के पावन मौके पर बताते हैं शहर के प्राचीन शिवालयों का इतिहास।
पक्का तालाब…
पक्का तालाब हैरीटेज धरोहर है। इसके किनारे प्राचीन मंदिर है। इसमें शिवलिंग की स्थापना 1866 (विक्रमी सम्वत् 1923) में राजा फतेह प्रकाश के पुत्र कुंवर सुरजन सिंह ने करवाई थी। ये मंदिर शहर के बिलकुल बीचोंबीच स्थित है। कह सकते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 155 वर्ष पूर्व हुआ था। इसी मंदिर के किनारे एक धर्मशाला का भी जनहित में निर्माण हुआ था।
विगत के दशकों में तालाब का सौंदर्यकरण करने के प्रयास हुए हैं। अनारकली रेलिंग के अलावा तालाब में फाउंटेन भी लगाया गया हैै। एक जमाने में इसी तालाब से शहर में पानी की आपूर्ति भी होती थी। इसी तालाब के किनारे लखदाता पीर साहब की दरगाह भी है। इसका निर्माण भी राजा फतेह प्रकाश के वक्त हुआ था।
कलहूरी रानी ने अपने पुत्र कुंवर सुरजन सिंह के स्वास्थ्य लाभ के लिए करवाया था। यानि प्राचीन शिव मंदिर व लखदाता पीर साहब की दरगाह के निर्माण में ये समानता है कि दोनों में फतेह प्रकाश का नाम जुड़ा हुआ है।
रानीताल शिवालय
रानीताल में शिवालय का निर्माण राजा शमशेर प्रकाश ने अपनी रानी साहिबा कुटलानी की स्मृति में 1889 (विक्रमी सम्वत् 1944) में करवाया था। इस स्थान पर पहले से एक कच्चा तालाब व बाग था। इसमें एक कुआं भी है, जो चैड़ा व गहरा है। इतिहास के मुताबिक इस कुएं का निर्माण कुमाऊं वाली रानी साहिबा ने करवाया था, जो मंदिर के समीप है। मंदिर के चारों तरफ बाग होने से दृश्य लुभावना होता है। कुछ अरसे से प्राचीन शिव मंदिर की कमेटी द्वारा शिवरात्रि के मौके पर भव्य आयोजन का सिलसिला भी शुरू किया गया है। रानीताल के निर्माण के 100 साल पूरे होने पर 1989 में एक भव्य कार्यक्रम भी आयोजित हुआ था। इसकी सूत्रधार नगर परिषद बनी थी।
बोगरिया शिवालय
नाहन से चंद किलोमीटर दूर एक प्राचीन शिवालय मौजा बोगरिया में भी मौजूद है। इसकी स्थापना विक्रमी सम्वत 1918 में कुंवर वीर सिंह ने की थी। ये स्थापना उस दौरान की गई थी, जब मैदानी इलाकों की तरफ जाने वाली सड़क यहीं से होकर गुजरती थी। इस शिवालय की जानकारी काफी कम लोगों को है। राजघराने द्वारा नियुक्त पुजारी द्वारा मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना की जाती है।
पौड़ीवाला शिवालय
शहर से करीब 3 मील दूर मारकंडा नदी के तट पर भोले शंकर का प्राचीन मंदिर है। यहां महादेव का भव्य लिंग स्थापित है। इतिहासकार कंवर रणजौर सिंह की हिन्दी में रूपांतरित पुस्तक सिरमौर रियासत का इतिहास के मुताबिक मंदिर के निर्माण की कोई पट्टिका नहीं है। ये स्थान पौड़ीवाला के नाम से शताब्दियों से प्रसिद्ध है। इसी जगह पर राजा फतेह प्रकाश की समाधि भी है। इस स्थान पर स्वर्गीय राजा के शरीर की राख का कुछ हिस्सा भी दबाया गया है। इस स्थान को स्वर्ग की सीढ़ी भी माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि हर साल यहां शिवलिंग एक तिल के बराबर बढ़ता है।