मंडी, 2 नवम्बर : नाल्ट्रेक्सान साल्ट (Naltrexone salt) बारे या तो चिकित्सक बेहतर ढंग से जानते हैं या फिर वो लोग जो अफीम के नशे की लत छोडऩे के लिए इस साल्ट से बनी दवाईयों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन हो सकता है कि भविष्य में यह साल्ट हर किसी की जुबान से सुनाई दे। आईआईटी मंडी (IIT Mandi) के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि नाल्ट्रेक्सान साल्ट टाईप-2 शुगर का इलाज कर सकता है। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साईंस के शोधकर्ताओं या कहें कि वैज्ञानिकों (Scientists) ने इंसानी शरीर में डायबिटिज से सूजन पैदा करने वाले हाइपरइनसुलिनेमिया (Hyperinsulinemia) में अहम प्रोटीन अणु की पहचान की है। दावा किया गया है कि इस प्रोटीन अणु को नाल्ट्रेक्सान साल्ट से बनी दवा के इस्तेमाल से सक्रिय किया जा सकेगा।
बता दें कि नाल्ट्रेक्सोन (एलडीएन) का उपयोग आमतौर पर अफीम की लत छुड़ाने में किया जाता है। नाल्ट्रेक्सोन पहले से एफडीए से मंजूर दवा है। बताया जा रहा है कि जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में यह शोध प्रकाशित भी हो चुका है। शोध पत्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ प्रोसनजीत मोंडल हैं जोकि स्कूल ऑफ बेसिक साईंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं। इनके नेतृत्व वाली टीम में अभिनव चौबे, ख्याति गिरधर, डॉ देवव्रत घोष, आदित्य केएकर, शैव्य कुशवाहा और डॉ मनोज कुमार यादव शामिल रहे हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसुलिन पैनक्रियाज में बनने वाला हार्मोन हैं, जिसका इस्तेमाल कोशिकाएं खून से ग्लूकोज ग्रहण करने में करती हैं। लेकिन कई कारणों से कोशिकाएं इंसुलिन प्रतिरोध करने की क्षमता खो देती हैं, तो टाईप-2 डायबिटीज हो जाती है। इंसुलिन प्रतिरोध का संबंध हाइपरइनसुलिनेमिया नामक समस्या से है, जिसमें रक्तप्रवाह में जरूरत से ज्यादा इंसुलिन बना रहता है, जिस कारण कारण सूजन होती है।
शोधकर्ताओं (Researchers) ने देखा कि कम खुराक में नाल्ट्रेक्सोन (एलडीएन) देकर एसआईआरटी को सक्रिय किया जा सकता है, जिससे सूजन कम होगी और कोशिकाओं की इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ेगी।