शिमला, 25 सितंबर : जेबीटी से टीजीटी की प्रोमोशन के लिए स्नातक में 50 फीसदी अंक व टेट पास करना अनिवार्य रहेगा। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने जेबीटी अध्यापकों की वो याचिकाएं खारिज कर दी जिसके तहत स्नातक परीक्षा में 50 फीसदी अंकों की अनिवार्यता वाले नियम में छूट देने की गुहार लगाई थी। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने प्रार्थियों की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि यदि सरकार अपने क्षेत्राधिकार में रहते हुए बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उत्कृष्ट अध्यापक उपलब्ध करवाने हेतु कोई शर्त रखती है। तो उस शर्त को मनमाना नहीं ठहराया जा सकता।
कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि पदोन्नति पाना कर्मचारी का निहित अधिकार नहीं है। बल्कि उसका अधिकार केवल पदोन्नति के लिए उस समय कंसीडर किये जाने का है जब पदोन्नतियां की जा रही हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पदोन्नति नियम उस समय के लागू होते हैं। जिस समय विभागीय पदोन्नति समिति यानी डीपीसी द्वारा किसी प्रत्याशी की योग्यता देखी जानी हो। रिक्तियों के खाली होने के समय के नियम पदोन्नति के लिए लागू नहीं किये जाते। मामले के अनुसार शिक्षा विभाग ने 22 अक्टूबर 2009 को टीजीटी भर्ती के लिए नियम लागू किये जिनके तहत 5 वर्ष की नियमित जेबीटी सेवाएं देने वाले अध्यापक को पात्र बनाया गया।
योग्यता के तहत प्रत्याशी के पास बीएबीएड डिग्री होना जरूरी बनाया गया। जेबीटी अध्यापकों को पदोन्नति हेतु 15 फीसदी कोटा भी निर्धारित किया गया। 31 मई 2012 को इन नियमों में परिवर्तन कर शर्त लगाई गई कि प्रत्याशी स्नातक में कम से कम 50 फीसदी अंकों से उतीर्ण व टेट पास होना चाहिए। प्रार्थियों का कहना था कि वे स्नातक तो हैं परंतु 50 फीसदी अंकों के साथ उतीर्ण नहीं है। इसी कारण वे टेट पास भी नहीं है। प्रार्थियों का कहना था कि वर्ष 2012 से पहले उनके कोटे के तहत जो रिक्तियां उत्पन्न हुई थी उन्हें पुराने नियमों के तहत ही भरा जाना चाहिए। कोर्ट ने प्रार्थियों की दलीलों से असहमति जताते हुए उनकी याचिकाएं खारिज कर दी।