नाहन: शनिवार सुबह करीब सवा 10 बजे पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार का काफिला मालरोड पर एक ढ़ाबे के सामने रुक गया। भाजपा के दिग्गज नेता की नजरें अपने 47 साल पुराने दोस्त देवेंद्र चौधरी को तलाश रही थी। हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि आखिर शांता कुमार व देवेंद्र चौधरी के बीच क्या संबंध रहे हैं। सवालों का जवाब तलाशने पर पता चला कि पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार की शहर में ढ़ाबा चलाने वाले देवेंद्र चौधरी से 1972 में दोस्ती हुई थी।
संयोग से 1975 में एमरजेंसी के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री को नाहन की ही सैंट्रल जेल में भेजा गया था। राजनीतिज्ञ व साहित्यकार शांता कुमार को इस जेल में 19 महीने बिताने पडे़ थे। उस समय देवेंद्र चौधरी ही अपने ढ़ाबे से अक्सर शांता कुमार के लिए जेल में खाना ले जाया करते थे। दीगर है कि जेल में रहने के दौरान शांता कुमार ने चार पुस्तकें भी लिखी थी। करीब 6 साल बाद दोस्तों की मुलाकात हुई थी। जानकारी के मुताबिक पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार करीब आधे घंटे तक देवेंद्र चौधरी के बेटे दुर्गेश चौधरी द्वारा चलाए जाने वाले ढ़ाबे पर रुके। चौधरी के बेटों के अलावा उनके भाई के बेटे भी इसी व्यवसाय से मालरोड पर जुडे़ हुए हैं।
एमरजेंसी में जेल काटने के बाद शांता कुमार ने राजनीतिक जीवन में ऊंचाईयों को छुआ। ढाबे पर समय बिताने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने गुरुद्वारे का रुख किया। इसके बाद वो सैंट्रल जेल चले गए। उल्लेखनीय यह भी है कि सैंट्रल जेल में उस कमरे को पुस्तकालय बनाया गया है, जहां शांता कुमार ने अपने साथियों के साथ आपातकाल में 19 महीने का वक्त गुजारा था।
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