वी कुमार/ मंडी
कहते हैं कि शिखर पर पहुंचना आसान होता है लेकिन वहां पर टिके रहना कहीं ज्यादा मुश्किल। कुछ ऐसा ही इस वक्त मंडी जिला के साथ भी हुआ है। 30 सितंबर 2016 को मंडी को ग्रामीण स्वच्छता के मामले में जो पहला पायदान मिला था वो अब लुढ़कर 35वां हो गया है। यही नहीं प्रदेश की रैंकिंग में भी मंडी जिला छठे स्थान पर जा पहुंचा है। स्वच्छता का पुरस्कार प्राप्त करने के बाद प्रदेश में चुनावों का दौर शुरू हो गया और सभी उस कार्य में व्यस्त हो गए। इसके बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और स्वच्छता के कार्यों की तरफ ध्यान नही नहीं रहा।
बीते कुछ समय से स्वच्छता की गतिविधियां नाममात्र की ही रह गई हैं। मौजूदा समय में न तो महिला मंडल न ही पंचायती राज संस्थाएं और न ही राजनीतिक दलों से जुड़े पंचायत प्रतिनिधि इस कार्य में रूचि नहीं दिखा पा रहे हैं जबकि पहले सभी एकजुटता के साथ इसमें जुटे हुए थे। हालांकि जिला ने परफार्मेंस के पचास और पारदर्शता के 25/25 अंक हासिल किए हैं मगर स्थाईत्व में 25 में से मात्र 9. 34 अंक ही मिले हैं। स्वच्छता अभियान के लिए करीब आठ करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की जानी हैए जिसमें गांवों में लोगों के घरों से निकलने वाले पानी के लिए सोख्ता गडढे नालियां और केंचुआ खाद सयंत्र लगने थे, लेकिन यह राशि स्थानीय पंचायतों द्वारा अभी तक खर्च नहीं हुई है जिसकी वजह से मंडी नंबर वन से 35वें स्थान पर खिसक गया है।
उल्लेखनीय है कि जिला प्रदेश ही नहीं पूरे उत्तरी भारत का पहला खुला शौच मुक्त जिला बनने का गौरव हासिल कर चुका है। जिला में एक लाख 49 हजार से भी अधिक घरेलु शौचालय बिना किसी सरकारी मदद से लोगों ने करोड़ों रूपए की राशि के शौचालय बनाए। यह सब तब तक रहा जब तक इस अभियान में स्वयंसेवी संस्था जुड़ी रही। जैसे ही इस अभियान को पंचायतीराज संस्थाओं के हवाले किया गया यह औंधे मुंह गिर गया। इस बारे में डीसी ऋग्वेद ठाकुर का कहना है कि रैंकिंग में गिरावट डाटा एंट्री वेस्ड तकनीक से आई है लेकिन हम स्वच्छता के लिए लगातार काम कर रहे हैं और आने वाले दिनों में इसमें सुधार की गुंजाईश है। पंचायतों को नए डस्टबीन दिए जा रहे हैं और शेष बची राशि जल्द योजना के तहत खर्च की जाएगी।