एमबीएम न्यूज़/शिमला
सीटू जिला कमेटी शिमला ने प्रदेश सरकार द्वारा बस किराए में की गई बेइंतहा वृद्धि के खिलाफ आरटीओ कार्यालय शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। सीटू ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि इस भारी किराया वृद्धि के खिलाफ मजदूर सड़कों पर उतरकर आंदोलन तेज करेंगे। सीटू ने मांग की है कि उक्त किराया वृद्धि को तुरन्त वापिस लिया जाए व मजदूरों को महंगाई भत्ता दिया जाए। सीटू ने शिमला शहर में सभी मजदूरों को कर्मचारियों की तर्ज पर कैपिटल अलाउंस की भी मांग की है।
सीटू जिला महासचिव विजेंद्र मेहरा व सचिव बाबू राम ने कहा है कि उक्त किराया वृद्धि के खिलाफ जनता को लामबंद करते हुए सीटू सड़कों पर उतरेगी क्योंकि यह किराया वृद्धि न केवल अव्यवहारिक है अपितु इस से जनता पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा। यह किराया वृद्धि उत्तराखंड व पंजाब को आधार बनाकर की गई है जबकि हकीकत यह है कि उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति हिमाचल से खराब है व पंजाब की आर्थिक स्थिति हिमाचल की तुलना में बहुत अच्छी है। उत्तराखंड व पंजाब में मजदूरों का वेतन ज्यादा है व वहां पर सभी मजदूरों को महंगाई भत्ता भी दिया जाता है जबकि हिमाचल प्रदेश में मजदूरों को महंगाई भत्ता नहीं दिया जाता है। इस से साफ नजर आ रहा है कि प्रदेश सरकार जनता विरोधी है।
उन्होंने कहा है कि इस किराया वृद्धि से मजदूरों की हालत बहुत बुरी हो जाएगी क्योंकि प्रदेश में न्यूनतम वेतन केवल 6750 रुपये है व उसकी तुलना में किराया बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा है कि बस किराया बढ़ोतरी इतनी ज्यादा है कि लोगों की कम क्रयशक्ति के कारण अंततः न्यूनतम सफर के लिए लोगों के पास पैदल चलने के सिवाए कोई चारा नहीं बचेगा। हिमाचल प्रदेश में दूसरे प्रदेशों की तर्ज पर बसों के सिवाए कोई अन्य परिवहन माध्यम नहीं है। यहां पर रेलवे परिवहन न के बराबर है।
दूसरे प्रदेशों में बस किराया वृद्धि की सूरत में जनता के पास रेलवे परिवहन का विकल्प होता है इसलिए किराया वृद्धि जनता को ज्यादा नहीं चुभती है। अनेकों परिवहन माध्यम होने के बावजूद हरियाणा जैसे राज्यों में किराया बेहद कम है व महज 85 पैसे प्रति किलोमीटर है। परन्तु हिमाचल में केवल सड़क परिवहन के बावजूद बस किराया बहुत ज्यादा है, जोकि न केवल तर्कहीन है, अपितु जनता पर बोझ लादने वाला भी है।
उन्होंने कहा है कि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाका होने के कारण उद्योग दूर-दूर हैं व मजदूरों व आम जनता की रिहायशें भी कार्यस्थल से बेहद दूर हैं अतः उनके वेतन का औसतन 15 प्रतिशत भाग बस किराया में ही खर्च हो जाएगा। इसमें अगर उनके बच्चों व परिवार के परिवहन खर्चे को शामिल कर लिया जाए तो उनके कुल वेतन का एक-तिहाई अथवा 33 प्रतिशत बस किराए में ही खर्च हो जाएगा। इसलिए सीटू ने मांग की है कि केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी व प्रदेश सरकार को वैट में कटौती करके जनता को राहत देनी चाहिए।
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