शिमला (एमबीएम न्यूज़) : किसानों को बंदरों के आतंक से बचाने तथा शिमला व अन्य शहरों में इनकी सीना-झपटी की घटनाओं तथा काटने आदि से बचाने के लिए लाखों रूपया खर्च करने के बाद अब बंदरों को उतरी-पूर्वी तीन राज्यों को निर्यात करने की तैयारी चल रही है।
नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम की राज्य सरकारें मानव जीवन को खतरनाक घोषित किए जाने के बाद बंदरों के निर्यात के लिए मौखिक तौर पर मान गई है।
प्रधान सचिव वन विभाग तरूण कपूर ने बताया कि उक्त तीनों राज्यों की सरकारों की ओर से अब लिखित रूप् से हरी झंडी का इंतजार है और अब उनके निर्यात की औपचारिकताएं की जानी हैं। वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक तीनों राज्यों की सरकारें पांच से दस हजार तक बंदर लेने को तैयार है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से इनको बड़ी संख्या में पकड़ने के लिए अभी कुछ और राशि खर्च करनी पड़ेगी। ऐसे में बंदर पकडने वाले विशेषज्ञों को राज्य सरकार ने तलाशना भी शुरू कर दिया है।
उधर उत्तर पूर्व राज्यों की सरकारों का कहना है कि हिमाचल सरकार को भी इनके निर्यात का खर्चा वहन करना होगा। बंदरों का आतंक हर चुनाव में एक मुददा बन जाता है। सरकार द्वारा बंदरों को लेकर उनके लिए कुछ स्थानों पर करोडों रूपये से बाढ़े बनाए और इनकी नसबंदी भी की। फिर भी इनका आतंक और किसानों की फसलों को तबाह करना नहीं छूटा।
केंद्र सरकार द्वारा बंदर बाहुल्य क्षेत्रों में बंदरों को मानव जीवन के लिए खतरा घोषित किए जाने के बाद भी आज तक प्रदेश में किसी भी व्यक्ति या किसान ने एक भी बंदर को नहीं मारा। संभवतः इनके साथ देवभूमि हिमाचल के लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं। उधर, हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप तनवर ने कहा कि अब हमारी सभा ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी टीमें बनाई हैं, जो इन बंदरों को मारने का काम करेगी।
इस कार्य में किसान सभा कितनी सफल होती है, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से बंदरों को मारने का विरोध किया जा रहा है तथा कुछ एक संस्थाएं तो इसके लिए अदालत में भी गई हैं। कुलदीप तनवर का यह भी कहना है कि उतरी पूर्वी राज्यों को निर्यात करने के बाद किसान सभा को आशंका है कि यह समस्या बनी रहेगी।