इस बार का दशहरा
बड़ी धूमधाम से मनाया जाए
रावण नहीं अबके राम जलाया जाए
क्योंकि-
मैं बचपन से देखता आ रहा हूं
साल में बस एक बार
रावण जलता है
नजऱ वो मगर
हर नुक्कड़ चौराहे पर आता है
राम मुझे कहीं भी नजऱ नहीं आता
जिधर भी नजऱ करो
रावण हंसता दिखता है
तो क्यों न अबके बरस
नई प्रथा चलाई जाए
रावण नहीं अबके
राम जलाया जाए
फिर तो राम साल में बस
एक बार मरेगा
जन्म लेता मगर
वो हर घर में मिलेगा
फिर न पैदा होगा शायद
रावण कहीं भी
जिधर भी नजऱ करो
मुस्कुराता राम मिलेगा
बल्कि मैं तो यह कहूंगा
यदि एक राम को जलाने से
सौ राम पैदा होते हैं
तो क्यों न हर रोज़ ही
दशहरा मनाया जाए
राम ही क्यों
लक्ष्मण-सीता को भी साथ जलाया जाए।।
पंकज तन्हा
(नाहन, हिमाचल प्रदेश)
काव्य संग्रह- शब्द तलवार है, में से