शिमला, 25 अप्रैल : हमीरपुर संसदीय क्षेत्र हिमाचल के कई राजनीतिक दिग्गजों के भविष्य का फैसला करेगा। दोनों प्रमुख दलों के स्थापित नेताओं की इस चुनाव में कड़ी परीक्षा होगी। कांग्रेस के वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू व उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री इसी संसदीय क्षेत्र से आते हैं। वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर जो भाजपा उम्मीदवार भी हैं की साख भी दांव पर लगी है। अनुराग ठाकुर हालांकि बहुत सशक्त उम्मीदवार हैं, मगर कांग्रेस भी यहां उन्हें हराने के लिए अभी तक टिकट पर माथापच्ची में जुटी है।
इस लोकसभा क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो 1977 के बाद इस सीट पर ज्यादातर भाजपा का कब्जा रहा है। भाजपा यहां इतनी मजबूत है कि कांग्रेस पिछले कई साल से लगातार हार रही है। उनकी हार का सूखा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। 1952 में पहले चुनाव में यहां से आनंद चंद ने निर्दलीय चुनाव जीता था। 1967 में यहां प्रेम चंद वर्मा कांग्रेस के टिकट पर जीते। 1971 में पहली बार यहां ओबीसी तबके के नारायण चंद पराशर को कांग्रेस ने टिकट दिया और वह जीतने में सफल हुए। 1977 में जनता लहर में उन्हें ठाकुर रणजीत सिंह ने पराजित कर दिया। मगर 1980 व 1984 के दो चुनाव में नारायण चंद पराशर लगातार इस सीट से जीतने में सफल रहे।
1989 में यहां पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भाजपा की झोली में यह सीट डाली। वह फिर से 1991 में यहां से जीते। 1996 में कांग्रेस के विक्रम सिंह ने अंतिम बार कांग्रेस की झोली में इस सीट को डाला। उसके बाद से लगातार यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। 1998, 1999 व 2004 में यहां से भाजपा नेता सुरेश चंदेल ने लगातार तीन जीत हासिल की। मगर संसद में प्रश्न पूछे जाने वाले मामले में रिश्वत का जिक्र आने के बाद उनका राजनीतिक कैरियर यहीं खत्म हो गया।
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भाजपा ने 2007 में फिर से धूमल को यहां से चुनाव लड़ाया और वो भाजपा के टिकट पर जीत गए। बाद में 2008 में पहली दफा अनुराग ठाकुर ने इस सीट से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की, क्योंकि धूमल के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हो गई थी। 2009 में अनुराग फिर से जीतने में कामयाब रहे। 2014 में अनुराग जीते और संसद पहुंचे। 2014 की मोदी लहर में अनुराग ठाकुर जीत कर पहली दफा कैबिनेट में वित्त राज्य मंत्री बने।
2019 में भाजपा ने फिर से अनुराग ठाकुर को यहां से टिकट दिया। ठाकुर जीत कर केंद्र में कैबिनेट मंत्री बने। उन्हें सूचना व प्रसारण एवं खेल व युवा मंत्रालयों का महत्वपूर्ण कार्यभार मिला। इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं। काफी दिनों से प्रचार भी शुरू कर चुके हैं। वहीं, कांग्रेस ने पहले यहां सतपाल रायजादा को टिकट देने का फैसला लगभग कर ही लिया था, मगर कांग्रेस आलाकमान को उनकी उम्मीदवारी अनुराग के सामने हल्की लगी, जिसके चलते एक बार आस्था अग्निहोत्री के चुनाव लड़ने की भी चर्चा चली, मगर उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।
राजपूत व ब्राह्मण बाहुल्य इस सीट पर पूर्व सैनिकों व कर्मचारियों का भी बड़ा वोट बैंक है। हमीरपुर के साथ ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा की जसवां परागपुर व देहरा सीट हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। मंडी जिला की धर्मपुर विधानसभा भी इसी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। कुल मिलाकर भाजपा इस संसदीय क्षेत्र में हमेशा फ्रंट फुट पर रही है। कांग्रेस ने यहां कई दिग्गज लीडरों को चुनाव लड़ाया, लेकिन सफलता दूर ही रही। अब बड़े जोर-शोर से यहां ऐसे नेता की तलाश की जा रही है, जो अनुराग को न सिर्फ टक्कर दे सके, बल्कि इस सीट को कांग्रेस की झोली में डालकर वर्षों से चले आ रहे जीते के सूखे को खत्म करे।
मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री का गृह लोकसभा क्षेत्र होने से उनके लिए यहां जीतना व हारना सम्मान से जुड़ा है। वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अनुराग ठाकुर दोनों की साख भी राष्ट्रीय राजनीति के परिपेक्ष्य में दांव पर है। इस संसदीय क्षेत्र की गगरेट, कुटलैहड़, बड़सर व सुजानपुर विधानसभाओं में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के चलते विधानसभा उप चुनाव भी होना है। ये भी सांसद उम्मीदवारों के हार-जीत के गणित को प्रभावित करेंगे।
सुनने में आ रहा है कि हमीरपुर जिला में तो यह नारा भी चल रहा है कि देश का वोट पीएम को, प्रदेश का वोट सीएम को। अब देखना है कि कांग्रेस किसे यहां से चुनाव लड़ाती है। ऊना व बिलासपुर जिलों में जो अपने गढ़ को सुरक्षित रख पाएगा, उसे जीत मिल सकती है।
@R1