नाहन/प्रकाश शर्मा : नेकी कर दरिया में डाल…ये कहावत तो आपने सुनी होगी। हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब का एक गौरक्षक भी इसी राह पर था। पत्रकारिता से सफर शुरू करने वाला ये शख्स गौरक्षा में इस कद्र लीन हो गया कि ये भी भुला बैठा कि एक दिन घर भी नीलाम हो सकता है। नौबत, घर नीलामी तक पहुंच ही गई है। 27 मार्च को बैंक ने घर के नीलामी तय कर दी है। सचिन का परिवार अब खुले आसमान के नीचे आने को मजबूर है।
परिवार में एक साल की मासूम बेटी और दो साल के बेटे के अलावा बुजुर्ग दादी और पत्नी है। यदि,आप आर्थिक मदद देने की स्थिति में न हो तो गौरक्षक की ये मार्मिक दास्तां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू तक ही पहुंचा दे। हैशटैग #NahiHogaSachinKagharNilam व #SaveCow की मुहिम भी शुरू की जा सकती है।
हम बात कर रहे हैं, हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब के गौ रक्षक सचिन ओबरॉय की। बेजुबान जानवरों को आशियाना देते-देते खुद बेघर होने के कगार पर पहुंच चुका है। 20 लाख रुपए बैंक से लोन लेकर घर को गिरवी रख दिया था। मकसद एक ही था, गौरक्षा। 15 लाख रुपए का पर्सनल लोन भी ले लिया। 20 लाख के करीब चारे का उधार अलग है। लेकिन, सचिन ने अभी भी पीछे हटने का फैसला नहीं लिया है बल्कि अंतिम सांस तक गौ रक्षा करने का प्रण ले लिया है। कुल 55 लाख का कर्ज उठाकर सचिन विकट हालात के बावजूद गौ रक्षा की राह पर है। आपको बता दे कि हरियाणा की सीमा पर बहरहाल के समीप सचिन की गौशाला में इस वक्त भी 50 गाए है।
ऐसे शुरू हुआ सफर….
2010 में सचिन ने पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया था। निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकारिता के लिए अपनी पहचान बनाई। पत्रकारिता के दौरान ही बेजुबान जानवरों की भी देखभाल करते थे। ओबेरॉय बताते हैं कि बचपन से ही गऊओं के प्रति गहरा लगाव था। स्कूल में पढ़़ाई के दौरान दोस्तों व अध्यापकों के सहयोग से अक्सर बेजुबानों की सेवा किया करता था। बड़ा हुआ तो सेवाभाव भी बढ़ गया। इस प्रेम ने सचिन ओबरॉय को एक पत्रकार से गौरक्षक बना दिया। 2019 में सचिन के पत्रकारिता छोड़ गौरक्षा का फैसला लिया।
सचिन ने सड़कों पर ठोकरें खा रहे बेजुबान व लावारिस गऊओं के लिए गौशाला का निर्माण किया। कठिनाईयों बहुत थी। इकलौता बेटा होने के नाते घर की तमाम जिम्मेदारियां उनके कंधों पर आ गई थी। चूंकि, मां मीना ओबेरॉय एक रिटायर्ड शिक्षक हैं, लिहाजा उनकी पेंशन व सचिन ओबरॉय की मेहनत से घर चल रहा था। लेकिन गौशाला में भी पशुओं की संख्या बढ़ती जा रही थी।
लाजमी तौर पर खर्च भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा था। जब बचत का पैसा खत्म हुआ तो सचिन ने पहले बैंक से 15 लाख का पर्सनल लोन लिया। इसी बीच लोगों का भी सहयोग मिला, लेकिन जैसे-जैसे कारवां आगे बढ़ता गया, लोगों की संख्या कम और गऊओं की संख्या बढ़ती गई।
सचिन ने घर से अपना ठिकाना बदलकर गौशाला कर दिया और बहराल स्थित गौशाला में दिन-रात बेजुबानों की सेवा में जुट गया। 15 लाख रुपए का लोन खत्म हो गया। चारा भी उधारी पर चल रहा था। लिहाजा, अब सचिन ने घर को भी गिरवी रखने का फैसला ले लिया। इस पर बैंक से 20 लाख का लोन ले लिया। ये फैसला, बिलकुल भी आसान नहीं था। घर पर दो साल का बेटा एक साल की बेटी सहित पत्नी व बुजुर्ग मां भी हैं।
2022 से ही बैंक के नोटिस आना शुरू हो गए थे और चारे की उधारी अब लाखों में पहुंच गई थी। वर्तमान समय की बात की जाए तो 35 लाख लोन के अलावा 20 लाख चारे के भी उधार हैं। बैंक ने अब घर को नीलाम करने की तारीख मुकर्रर कर दी है। 27 मार्च को घर की नीलामी तय है। बाकायदा, अखबारों में नोटिस प्रकाशित हो चुके हैं। सचिन ने बातचीत में बताया कि पहले वो पत्नी के साथ गौशाला में रह रहे थे, अब घर नीलाम होने के बाद मां व दो मासूम बच्चे भी गौशाला में ही शिफ्ट हो जाएंगे।
सचिन ने बताया कि गौशाला में अभी 50 के करीब गौवंश है, जिन पर रोजाना अढ़ाई से तीन हजार रुपए खर्च आ रहा है। महीने में इस खर्च के अलावा 15 से 20 हजार दवाईयों के लिए खर्च हो रहे हैं। सरकार की मदद की बात करें तो हर महीने 700 रुपए प्रति गौवंश दिए जा रहे हैं। इन सभी के अलावा परिवार के गुजर-बसर में भी खर्च हो रहा है।
धर्मपत्नी ने भी निभाया साथ….
सचिन ओबरॉय की धर्मपत्नी शालू ने भी उनका बखूबी साथ निभाया और बच्चों को दादी के साथ घर पर छोड़ अपना ठिकाना बदलकर उन्होंने भी गौशाला कर लिया। दोनों की दुनिया अब कुछ गज में फैली ये गौशाला बन चुकी है। माता-पिता होने के नाते बच्चों से अलग रहना आसान नहीं था। लेकिन बेजुबानों को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
सरकार व प्रशासन से नहीं कोई मदद….
सचिन ओबरॉय बताते हैं कि वह गौवंश के लिए कई बार अनशन व प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन सरकार व प्रशासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी। मिले तो सिर्फ आश्वासन। सैंकड़ों बेजुबान अभी भी सड़कों पर लावारिस घूम रहे हैं, जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सचिन ने बताया कि आर्थिक स्थिति बदत्तर हो चुकी है, लिहाजा वो अब और गौवंशों को आश्रय नहीं दे पा रहे हैं।
स्थानीय लोगों की मानें तो सचिन आधी रात को सब्जी मंडी में दुकानदारों द्वारा फेंकी गई बची-खुची सब्जियों को एकत्रित कर गऊओं के चारे का इंतजाम करता है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहा। सचिन ने बताया कि सरकार व प्रशासन से उम्मीद छोड़ दी है। शुरू-शुरू में लोगों ने साथ दिया था, लेकिन एक-एक करके सब पीछे हट गए।
अब समाज की बारी….
इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में कई पशु प्रेमी व ऐसी संस्थाएं हैं, जो लावारिस पशुओं को आशियाना देने में मदद कर रही हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश में फिलहाल ये होता नजर नहीं आ रहा। सचिन, ने ये फैसला तो ले लिया है कि आखिरी सांस तक वह सेवा करते रहेेंगे। लेकिन, मानवता के नाते समाज की जिम्मेदारी भी है कि सचिन का संकट की घड़ी में साथ दें। परिवार खुले आसमान के नीचे आने को मजबूर है। ऐसा कोई साधन नहीं है, जहां से पैसा जुटाकर वह बैंक का लोन चुका सके। चारा देने वालों ने भी अब चारा देने से साफ मना कर दिया है। ऐसे में गौशाला में मौजूद गौवंश भी भूखे मरने की कगार पर आ गया है। लिहाजा अब सचिन और बेजुबान जानवरों को मदद की दरकार है। हमारी और आपकी छोटी सी मदद से बेजुबान जानवरों का जीवन बचा सकती है।
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