शिमला, 16 मार्च : हिमाचल प्रदेश की सियासत में 4 जून 2024 की तारीख अहम होगी, क्योंकि विधानसभा की 6 सीटों के उपचुनाव का परिणाम जारी होगा। सियासत में एक दिलचस्प मोड़ भी आया है। यदि, भाजपा 6 की 6 सीटोें को जीतने में कामयाब होती है तो विधानसभा में कांग्रेस व भाजपा का आंकड़ा 34-34 का हो जाएगा।
बड़े सवाल ये है कि क्या भाजपा कांग्रेस के बागी विधायकों को टिकट दे पाएगी। भाजपा का टिकट मिलने की स्थिति में ये बागी चुनाव जीत पाएंगे या नहीं। कांग्रेस की सरकार का सियासी संकट एक सीट जीतने से टल जाएगा। राज्यसभा के चुनाव में क्रॉस वोटिंग में कथित लेन-देन को लेकर कांग्रेस नेताओं ने बागी नेता चैतन्य शर्मा के पिता व आशीष शर्मा के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया हुआ है। हालांकि, इन्हें हाई कोर्ट (High Court) से सशर्त जमानत मिली हुई है, लेकिन शुक्रवार को ये जांच में स्वास्थ्य कारणों को बताकर शामिल नहीं हुए थे।
27 फरवरी के बाद से कांग्रेस के बागी अपने विधानसभा क्षेत्रों में नहीं पहुंचे हैं। प्रश्न ये भी है कि क्या उप चुनाव की घोषणा के बाद ये जल्द से जल्द अपने हलकों में लौटेंगे या नहीं। भाजपा के लिए भी इन नेताओं को टिकट देने की राह आसान नहीं होगी। इससे पार्टी में बेहतरीन जंग भी शुरू होने की आशंका हो सकती है।
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बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटें मिली थी। इसमें से 6 विधायकों की सदस्यता समाप्त हो चुकी है। भाजपा ने 25 सीटें हासिल की। तीन विधायक निर्वाचित चुने गए थे। यानि भाजपा का आंकड़ा निर्दलीयों सहित 28 का है। चूंकि बागी नेताओं ने सदस्यता रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की हुई है, लिहाजा ये माना जा रहा था कि लोकसभा के साथ उप चुनाव की घोषणा न हो। लेकिन चुनाव आयोग ने उप चुनाव की घोषणा का ऐलान कर सियासत को चौंका दिया।
ये भी किंतु-परंतु…
हिमाचल में लोकसभा की चार सीटें हैं। विधानसभा की 6 सीटों पर चुनाव होना है। सुक्खू सरकार को हर हाल में उप चुनाव पर भी केंद्रित होना पड़ेगा। ऐसे में लोकसभा सीटों से कांग्रेस का ध्यान कम हो सकता है। उप चुनाव इस कारण मायने रखता है, क्योंकि सुक्खू सरकार को अपनी स्थिरता भी चाहिए। हालांकि, सुक्खू सरकार ने सियासत के हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद सख्त संकेत भी दिए हैं। इसमें एक तरफ जहां बागियों को विधायकी खोनी पड़ी, वहीं दूसरी तरफ दो को आपराधिक मामला भी झेलना पड़ रहा है।
यही नहीं, तीसरे स्ट्रोक में सुक्खू ने रुष्ट नेताओं को अहम ओहदों से भी नवाजा है। तेजतर्रार मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के बाद सरकार के सुर में सुर मिला लिए हैं। पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हो गया था कि विक्रमादित्य सिंह पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। बहरहाल, सुक्खू पार्टी में बगावती सुरों को नियंत्रित करने में सफल हो गए हैं।