श्री रेणुका जी वैटलैंड दूसरी मर्तबा नन्हें कछुओं के दुर्लभ प्रजनन का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। दो से तीन माह के बाद 25 से 30 नन्हें कछुए जन्म लेगें। इस बार वन्यप्राणी विभाग विषेषज्ञों की मौजूदगी में दुर्लभ प्रजनन को अंजाम देने की कोषिष में है। इस बार विभाग ने कछुओं के 30 अंडों को संरक्षित किया हुआ है। हालांकि गत वर्ष सफल प्रजनन के बाद विभाग ने इस दिषा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए लेकिन अब दलील है कि भारतीय वन्यप्राणी संस्थान देहरादून से विषेषज्ञों को बुलाया जाएगा। गत वर्ष की तुलना में इस बार गर्मी देरी से षुरू होने से कछुओं का प्रजनन भी देरी से हो सकता है। 2013 में 10 से 20 जुलाई के बीच नन्हें व आकर्षक कछुओं ने जन्म लिया था। अपनी तरह का यह दुर्लभ प्रजनन था। पिछले साल जन्मे कछुओं को विभाग ने मात्र छह से सात महीने की उम्र में रेणुका झील में छोड दिया था। कछुओं के प्रजनन के अलावा पालन-पोषण के लिए विभाग में कोई कर्मचारी व अधिकारी प्रषिक्षित नहीं है। लिहाजा विभाग ने नन्हें कछुओं को झील में छोडना ही बेहतर समझा। यह बात भी दीगर है कि झील में नन्हें कछुओं का जीवन संकट में पडा होगा। यह बताना संभव नहीं है कि कितने नन्हें कछुए जीवित बचे होगें। बताया गया है कि वार्षिक प्लान में भी कछुओं के प्रजनन व पालन-पोषण को षामिल किया जा सकता है। इसके तहत केंद्र से फंडिग मिलती है। यह भी बताया गया है कि झील के एक छोर पर ही मादा कछुओं को अंडे देने के लिए संरक्षित किया जा सकता है। गौरतलब है कि झील में जलस्तर कम हो जाने पर मादा कछुआ बाहर निकलकर अडे नहीं दे सकती है। इसी कारण झील के किनारे जमा गाद में ही अंडे देकर झील में वापिस चली जाती है। मादा कछुआ वापिस अपने अंडों के पास नहीं आती है। इसी कारण अंडे जानवरों का षिकार बन जाते है। कुल मिलाकर रोचक बात यही है कि दूसरी बार कछुआंे के प्रजनन की कोषिष की जा रही है। विभाग ने कछुओं के अंडों को अज्ञात स्थान पर छिपाया हुआ है।
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