नाहन शहर के बेटे संजीव पाल ने मात्र तीन साल में फिल्म जगत में बतौर प्रोडयूसर जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है। बालीवुड में फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन से संजीव ने 2011 में करियर शुरू किया। शुक्रवार को देश भर में 1800 सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म मस्तराम में संजीव ने प्रोडयूसर की भूमिका अदा की। ऐसा कम होता है कि जब कम बजट की फिल्म को 1800 स्क्रीनों पर लांच किया जाएगा। फिल्म जगत के नामी नाम सुनील बोहरा को अपना गुरू मानने वाले संजीव ने 1987 में मुंबई का रूख किया था। 1980 के दशक में पीली पन्नी साहित्य का दौर था। इस तरह का साहित्य रेलवे स्टेशनों, बस अडडों व अन्य स्थानों पर जगकर बिका करता था। इसके अलावा मार्निंग शो फिल्मों का भी अच्छा खासा दर्शक वर्ग था। स्कूल से गायब होकर छात्र फिल्मों को देखने के लिए लाईनों में नजर आते थे। सिेनेमा हर व्यक्ति की पहुंच में नहीं था। लिहाजा पीली पन्नी साहित्य ही डिमांड में रहता था। इस तरह के साहित्य का लेखक मस्तराम था। साहित्य लाइब्रेरी, स्कूल, स्टडी रूम में नहीं पढा जाता था बल्कि बंद कमरों, बाथरूम व दोस्तों की टोली में हिट था। इसी पर फिल्म की कहानी को दिलचस्प अंदाज में पेश किया गया है। मस्तराम के अश्लील साहित्य में पडोस की चालू आंटिया, हॉट भाभी, बेवफा पत्नी, सैक्सी कामवालियां व परफेक्ट दूधवाली पात्र बनती थी। यह फिल्म उसी अंजान शख्स की काल्पनिक कहानी है जिसे कभी किसी ने नहीं देखा। लेकिन फारबिडन संसार में कईयों की नींद उडाई। संजीव का कहना है कि पहले दिन इस फिल्म को अच्छा रिस्पांस मिला है। उन्होनें कहा कि मौजूदा समय में भारतीय सिनेमा बदलाव के दौर में है। अब यहां हर तरह की फिल्में लिखी जा रही है।
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