नाहन (शैलेंद्र कालरा): यह मामला दंग कर देने वाला है। 55 साल से एक परिवार अजीब स्थिति का सामना करता रहा। दरअसल परिवार स्वर्ण जाति (राजपूत) से संबंधित है, लेकिन 1961 के बाद से परिवार को अनुसूचित जाति का तमगा पहनना पड़ रहा था। 1961 में परिवार के मुखिया मोहर सिंह ने अनुसूचित जाति की महिला से प्रेम विवाह कर लिया था। इसकी सजा आज तक परिवार को भुगतनी पड़ी।
पंचायत के रिकॉर्ड में मोहर सिंह को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया गया। तब से पंचायत रिकॉर्ड में परिवार को अनुसूचित जाति से संबंधित दर्शाया जाने लगा। हालांकि 2011 में मोहर सिंह का निधन हो गया, लेकिन उनके दो बेटे नैन सिंह व सूरत सिंह इस रिकॉर्ड की दुरुस्ती को लेकर संघर्ष में लगे रहे। दीगर बात यह है कि परिवार को अनुसूचित जाति को लेकर कोई भी आरक्षण का फायदा नहीं मिला, क्योंकि इसका प्रमाणपत्र राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर होता है।
रोहनाट उप तहसील के धारवा गांव से संबंधित इस मामले में वीरवार को शिलाई के एसडीएम ने फैसला सुना दिया है। परिवार को पहले की तरह स्वर्ण जाति का स्टेटस दिया गया है। ट्रांसगिरि क्षेत्र में कई प्रथाएं प्रचलित रही हैं। मोहर सिंह के बेटों नैन सिंह व सूरत सिंह पर भी समाजिक तिरस्कार का दबाव इस कदर रहा कि उन्हें भी अनुसूचित जाति से ही अपनी-अपनी शादी करनी पड़ी। परिवार का कुनबा काफी बड़ा हो चुका है।
उधर पूछे जाने पर शिलाई के एसडीएम विकास शुक्ला ने पुष्टि करते हुए कहा कि यह सही है कि 1961 में पंचायत में तैनात रहे सचिव ने परिवार की जाति रिकॉर्ड में बदल दी थी। उन्होंने कहा कि इस बारे याचिका लंबित थी, जिसका निपटारा वीरवार को कर दिया गया है।