मंडी, 16 जुलाई : प्राचीन पंचवक्त्र मंदिर से सिल्ट व गाद हटाने का काम करने वाले कर्मचारियों व लोगों को पानी के लिए नहीं पूछा जा रहा है। हेलीकॉप्टर में बैठकर हर रोज नेता यहां पहुंच रहे हैं। उनके लिए एकदम बोतलबंद पानी की व्यवस्था हो जाती है। नेता आ रहे हैं, मंदिर के बाहर खड़े होकर फोटो भी खिंचवा रहे हैं। राजनीति के अलावा यहां कुछ भी नहीं हो रहा है। यह कहना है मंदिर के पूर्णाेद्वार में लगे स्थानीय लोगों व कर्मचारियों का।
इनका कहना है कि पिछले कई दिनों से वह मंदिर से सिल्ट व मिटटी हटाने का कार्य कर रहे हैं। पंचवक्त्र मंदिर के साथ बना पुल टूटने से वे बावड़ी से पानी नहीं ला पा रहे हैं। ऐसे में उन्हें काम करते समय पानी तक के लिए नहीं पूछा जा रहा है। जब कोई नेता यहां पर आता है तो उनके लिए बोतलबंद पानी की व्यवस्था हो जाती है। लेकिन उनके लिए कोई भी विभागीय अधिकारी पानी की व्यवस्था नहीं कर रहा है।
वहीं इनका आरोप है कि एक ओर मंदिर के अंदर से मिट्टी व गाद निकाली जा रही है। वहीं जब कोई नेता यहां पहुंच जाता है तो उस गड्ढे को भरने के लिए फिर से मिट्टी अंदर डालने के आदेश हो जाते हैं। वहीं उन्होंने कहा कि मंदिर के साथ ही सीवरेज खुले में बह रही है। बार-बार फोन करने के बाद भी इस लाइन को ठीक करने के लिए भी विभाग कोई जहमत नहीं उठा रहा है।
बता दें कि भारी बारिश के कारण जब व्यास नदी ने रौद्र रूप धारण किया तो यह नदी अपने साथ सब कुछ बहा कर ले गई। लेकिन एक ऐसा मंदिर जो आधे से ज्यादा डूबने के बाद भी अधिक खड़ा रहा वह था पंचवक्त्र महादेव मंदिर। जिसके बाद इसकी तुलना उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर से की जा रही है। 48 घंटे से भी लगातार हुई बारिश के चलते ब्यास नदी में इतना पानी आ गया कि कई सालों बाद एक बार फिर सुकेती खड्ड व व्यास के संगम पर बना पंचवक्त्र महादेव मंदिर करीब-करीब जलमग्न हो गया। ब्यास नदी में आई भयंकर बाढ़ के बाद पूरे मंदिर में सिल्ट व मिट्टी भर गई है।
ब्यास नदी का बहाव थमने के बाद अब मंदिर सिल्ट व मिट्टी हटाने का काम लगातार जारी है। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है और इस मंदिर के पूर्णाेद्वार के लिए विभाग के कर्मचारियों के साथ रोजाना 40 से 50 स्थानीय लोग अपना श्रम दे रहे हैं। लेकिन विभागीय अधिकारियों द्वारा इनके लिए पानी की व्यवस्था तक नहीं की जा रही है जिससे इन लोगों में विभाग के प्रति रोष व्याप्त है।