शिमला, 06 मई : जम्मू व कश्मीर के राजौरी (Rajouri) में आतंकी हमले में वीरगति प्राप्त करने वाले “अरविन्द कुमार” अदम्य साहस व जीवट प्रकृति (living nature) के व्यक्तित्व थे। कांगड़ा जनपद के पालमपुर उपमंडल की मरुह पंचायत के रहने वाले 32 वर्षीय शहीद अरविन्द कुमार पिछले 12 सालो से 9 पैरा रेजिमेंट (9 para regiment) में दुश्मनों से लोहा ले रहे थे।
मिल रही जानकारी के मुताबिक शहीद नायक अरविन्द सेना की सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical strike) का हिस्सा भी रहे थे। अरविन्द 12 वर्ष पहले पंजाब रेजिमेंट (Punjab regiment) में भर्ती हुए। इसके चंद समय बाद वो पैरा (स्पेशल फ़ोर्स) का हिस्सा बन गए।
इस दौरान वह स्पेशल फ़ोर्स (Special Forces) की स्पेशल ट्रेनिंग के लिए जर्मनी (Germany) भी जा चुके थे। शहीद की वर्दी पर सितारे वीरता की गवाही देते थे।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अरविंद के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने 9 पैरा के कश्मीर (Kashmir) में हरेक एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन (anti terrorist operations) में हिस्सा लिया। फ्रंट से लीड करना शहीद की फितरत थी। ऐसा भी माना जा रहा है कि गोपनीयता की वजह से शहीद “अरविन्द” के साहस की कई कहानियां 9 पैरा के इतिहास में दर्ज है।

स्कूल टाइम से ही “अरविन्द” अच्छे स्पोर्ट्समैन होने के साथ-साथ मिलनसारिता के लिए जाने जाते थे। वह दो-दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे थे। घर में पीडब्ल्यूडी (PWD) से रिटायर्ड पिता उज्जवल सिंह मानसिक बीमारी से ग्रसित है। पिता के इलाज के लिए अरविन्द जनवरी में 2 माह की छुट्टी लेकर घर आए थे। दो बेटियों में छोटी बेटी भी अस्वस्थ रहती है। इतना सब होने के बावजूद भी अरविन्द ने कर्तव्यपरायणता में कमी नहीं आने दी।
शुक्रवार को भी ऐसा ही हुआ। 9 पैरा रेजिमेंट को राजौरी में एक गुफा में छिपे आतंकवादियों को न्यूट्रीलाइज (neutralize) करने का टास्क दिया गया। शहीद अरविन्द की 9 पैरा रेजिमेंट कुपवाड़ा (Kupwara) में तैनात थी। अरविन्द ने ऑपरेशन में जाने के लिए हामी भरी। हौसले इतने बुलंद थे कि वो कई ऑपरेशन में कामयाब होकर ही लौटे। मगर इस बार होनी को कुछ और ही मंजूर था।
दुश्मन ने धोखे से आईईडी (IED) लगाकर बारूदी विस्फोट से अरविन्द सहित 5 जवानों को शहीद कर दिया। आमने-सामने की लड़ाई में अगर सामना होता तो “अरविन्द” हमेशा की तरह दुश्मनों के दांत खट्टे कर ही वापिस लौटता। मां भारती की रक्षा करते हुए बहादुरी से तिरंगे में लिपट कर घर वापिस आया। गांव में सबका चहेता था। जब भी छुट्टी आता था तो युवकों को नशे से दूर रहकर शारीरिक फिटनेस (physical fitness) पर ध्यान देने का पाठ पढ़ाता था।
शहीद अरविन्द के भाई भूपेंद्र कुमार के अनुसार सबसे पहले जब उन्हें इसकी सूचना मिली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। मगर ईश्वर के सामने कोई कुछ नहीं कर सकता। रिश्तेदार संजीव कुमार ने मीडिया को बताया कि वो बचपन से ही साहसी और प्रतिभाशाली था। स्कूल के समय से ही फौज में जाने के लिए आतुर था। अच्छा खिलाड़ी होने के अलावा अचूक निशानेबाज भी था।
मानसिक रूप से भी वह बहुत मजबूत था। 2012 में पंजाब रेजिमेंट (Punjab Regiment) में भर्ती हुआ। बाद में अपने जुनून के चलते स्पेशल फ़ोर्स का हिस्सा बना। 9 पैरा रेजिमेंट में जाने के बाद उसके हौसलों को और उड़ान मिली। छोटी बेटी व पिता के अस्वस्थ होना उनकी ड्यूटी के आड़े नहीं आया। अरविन्द अपने पीछे दो छोटी-छोटी बेटियां, पत्नी व बुजुर्ग माता-पिता छोड़ गए हैं। लाजमी तौर पर शहीद की वीरता की कहानी आने वाले समय में युवाओं में एक प्रेरणा स्रोत बनेगी।
समूची घाटी वीर की शहादत पर गमगीन थी। शनिवार दोपहर शहादत स्थल राजौरी से उधमपुर तक बारिश का मौसम होने के कारण उनकी पार्थिव देह सड़क मार्ग से पालमपुर के होल्टा स्थित आर्मी कैंप पहुंची।