मंडी (वी. कुमार): पूर्व केंद्रीय संचार राज्य मंत्री पंडित सुखराम करीब तीन वर्षों के बाद अचानक किसी सार्वजनिक समारोह में शिरकत करने पहुंचे। बता दें कि पंडित सुखराम को देश में संचार क्रांति का अग्रदूत माना जाता है, लेकिन काफी लंबे समय से उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया है।
हिमाचल प्रदेश की राजनीति के चाणक्य के नाम से विख्यात पूर्व केंद्रीय संचार राज्य मंत्री पंडित सुखराम ने वर्ष 2007 में राजनीति से सन्यास ले लिया है। पंडित सुखराम सिर्फ चुनावों के दौरान दो दिनों के लिए मैदान में उतरते हैं और इसके अलावा किसी भी समारोह में शामिल नहीं होते। पंडित सुखराम को राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र कैबिनेट मंत्री अनिल शर्मा संभाल रहे हैं। सोमवार को कोटली के लोग उस वक्त हैरान रह गए, जब यहां कालेज का उदघाटन करने आए अनिल शर्मा के साथ पंडित सुखराम भी नजर आए। क्योंकि तीन वर्ष पहले जब चुनाव थे, उस वक्त पंडित सुखराम ने यहां सार्वजनिक समारोहों में शिरकत की थी।
बता दें कि पंडित सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र पर एकछत्र राज किया है। उन्होंने यहां से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 13 चुनाव लड़े और कभी हार का सामना नहीं किया। यही कारण है कि पंडित सुखराम आज इस बात को ताल ठोककर कहते हैं कि चुनाव तो बाकी नेताओं ने भी बहुत लड़े, लेकिन उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र बदलने पड़े, लेकिन उन्होंने हमेशा एक ही सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी। पंडित सुखराम ने अपने जीवन में जो भी मुकाम हासिल किए उसके पीछे सदर विधानसभा क्षेत्र की तुंगलघाटी का काफी ज्यादा योगदान रहा।
आज भी तुंगल के लोग पंडित सुखराम को अपना मसीहा मानते हैं। यही कारण है कि है कि जब पंडित सुखराम तीन वर्षों के बाद तुंगलघाटी के कोटली पहुंचे तो तुंगल की तारीफ करना नहीं भूले। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर कर रखी है और अगर उसका फैसला उनके हक में आता है तो वह पूरे देश को बतायेंगे कि तुंगल का इतिहास क्या है और तुंगल का स्थान देश भर में कौन सा है।
पंडित सुखराम ने सभा को संबोधित करते हुए पुरानी बातों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि उनके जीवन का रास्ता संघर्ष भरा रहा है। उनके जमाने न तो सड़कें हुआ करती थी और न ही बिजली फिर भी लोगों ने उनका साथ दिया और उन्होंने सदर हल्के में विकास की धारा बहा दी। उन्होंने बताया कि जब उन्हें सांसद का चुनाव लड़ने का मौका मिला तो उन्होंने सदर का उत्तराधिकारी अपने बेटे को नहीं बल्कि एक ठाकुर को बनाया था और उसके लिए दिल्ली में टिकट की वकालत भी की थी।
पंडित सुखराम ने इस दौरान उन सभी लोगों का आभार भी व्यक्त किया जिन्होंने हर वक्त उनका साथ दिया। उन्होंने कुछ समर्थकों के देहांत पर भी दुख व्यक्त किया और उनके देहांत पर न जा पाने का मलाल भी जाहिर किया।