शिमला, 05 दिसंबर : आखिरकार लंबे इंतजार के बाद मतगणना का काउंटडाउन शुरू हो गया है। गली, मोहल्ले, सरकारी कार्यालयों व गांव की चौपालों में उम्मीदवारों के अलावा “हिमाचल में किसकी सरकार बनेगी” मुद्दे पर खूब चर्चाएं हो रही है। सबसे मुख्य मुद्दा जो चर्चाओं में है, वह “कौन बनेगा हिमाचल का अगला मुख्यमंत्री”। इसके अलावा प्रत्याशियों की जीत-हार पर भी शर्तें लग रही है। वहीं कांग्रेस को सत्ता में आने का विश्वास है, मगर मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा इस पर संशय बरकरार है। पिछले दिनों प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के कुछ सीएम पद के दावेदारों का बायोडाटा भी दिल्ली मंगवाया,ऐसे कयास है कि प्रियंका गांधी ने इसका अवलोकन भी किया है।
कांग्रेस ने सीएम पद के मापदंड तय किए है. उसमे क्षेत्र,व्यक्तिगत छवि, जाति व अनुभव शामिल है। जो नेता दौड़ में शामिल है, उनमें प्रमुख रूप से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह, कैंपेन कमेटी के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू, नेता विपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, वरिष्ठ नेता कौलसिंह ठाकुर, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर, धनीराम शांडिल, हर्षवर्धन चौहान व कांगड़ा से ओबीसी लीडर व पूर्व मंत्री चंद्र कुमार शामिल है। अंदरूनी सूत्रों व छानबीन के बाद एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क आपको इन उम्मीदवारों के गुण व दोष के आधार पर बताने का प्रयास कर रहा है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद की पसंद कौन हो सकता है।
सबसे पहले बात करते है पार्टी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की धर्मपत्नी प्रतिभा सिंह की। मंडी से वर्तमान में प्रतिभा सिंह सांसद है। मंडी जिला में विधानसभा की 10 सीटें है। वहीं शिमला जिला में वीरभद्र परिवार की राजनीतिक ताकत सब को मालूम है। शिमला जिला में भी विधानसभा की 8 सीटें है। यहीं नहीं पूरे प्रदेश में वीरभद्र सिंह की लिगेसी का लाभ भी प्रतिभा सिंह के साथ है। कांगड़ा जिला में अभी भी स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के कई ऐसे वफादार नेता है, जो प्रतिभा सिंह के साथ इस समय भी चट्टान की तरह खड़े है। सबसे ज्यादा विधायक के टिकट भी प्रतिभा सिंह की मनपसंद के उम्मीदवारों को मिले है। कुल मिलाकर प्रतिभा सिंह इस समय सीएम पद की सबसे प्रबल दावेदार है। उनके साथ जो सबसे बड़ी डिमेरिट है वो ये है कि उन्हें सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। वह मंत्री भी नहीं रही। इसके अलावा प्रतिभा सिंह मंडी से वर्तमान में सांसद होने के चलते कांग्रेस की केंद्र में जरुरत हैं। जिस वजह से आलाकमान इस बात पर भी विचार कर रहा है कि पहले ही कांग्रेस में सांसदों की संख्या बेहद कम है। जिसके चलते वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी।
दूसरे दावेदार सुखविंद्र सिंह सुक्खू हालांकि संगठन में कई पद संभाल चुके है, मगर कांग्रेस सरकार में उन्हें मंत्री पद नसीब नहीं हुआ। जिसके चलते उन्हें भी सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है। सुक्खू निचले हिमाचल से आते है। खुद की सीट पर भी जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। वहीं हमीरपुर छोटा जिला है। ऐसे में सुक्खू की फाइटर वाली छवि ही उनका मुख्य गुण है। जाति से राजपूत है, यह भी उनके पक्ष में जाता है। कई युवाओं को उनके कहने से टिकट भी दिए गया है। कितने उनमें से जीतकर आते है यह भी देखना होगा।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री सीएम पद के प्रबल दावेदार है। नेता विपक्ष की भूमिका को अच्छे से निभाया है। वीरभद्र सिंह गुट के सभी विधायकी के उम्मीदवारों का साथ है। प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला उनके लिए आलाकमान के समक्ष पैरवी कर रहे है। सरकार चलाने का अनुभव है। पिछली सरकार में उद्योग मंत्री रहे है। ब्राह्मण चेहरा व छोटा जिला होने के चलते दावेदारी कमजोर पड़ सकती है। ऊना से कितने विधायक जीतकर आएंगे यह भी देखना होगा।
वयोवृद्ध नेता कौल सिंह ठाकुर भी मुख़्यमंत्री की दौड़ में है। कई बार मंत्री रहे है। सरकार चलाने का अनुभव है। मगर विधायक उन्हें ज्यादा पसंद करेंगे या नहीं यह सोचने का विषय है। वो खुल कर कह चुके है कि वह कांग्रेस के नेताओं में सबसे वरिष्ठ है। इसलिए उनका दावा जरूर बनता है। राजपूत होने के साथ साथ बड़े जिले से आते है। होलिलॉज से भी नजदीकियां है। जीतने के लिए वह भी संघर्ष कर रहे है। देखना ये भी है कि चुनाव जीत भी पाते है या नहीं।
अन्य दावेदारों में रामलाल ठाकुर व धनीराम शांडिल व आशा कुमारी इतने प्रबल दावेदार नजर नहीं आते। तीनों नेता हालांकि वरिष्ठ है, मगर लॉबिंग का अभाव व उम्र आडे आ सकती है। तीनों नेताओं की विधायकों पर भी अच्छी पकड़ नहीं है। साथ ही यह भी तय नहीं है की तीनों जीत भी पाएंगे। क्योंकि तीनों की सीटों पर मुकाबला कड़ा है।
छुपे रुस्तमों में शिलाई के विधायक हर्षवर्धन सिंह चौहान की दावेदारी को किसी भी तरीके से नहीं नकारा जा सकता। वह लम्बे समय से विधायक है। ईमानदार छवि, सौम्य स्वभाव व वरिष्ठता के साथ साथ राजपूत बिरादरी से आते है। विधायकों से साथ तालमेल अच्छा है। पिता भी प्रदेश सरकार में लम्बे समय तक मंत्री रहे है। आईएएस अधिकारियों पर तगड़ी पकड़ रखने की क्षमता है। सिरमौर जिला से कितनी सीटें कांग्रेस जीतकर आएगी यह भी हर्षवर्धन की दावेदारी को पुख्ता करेगी। प्रियंका गांधी से नजदीकियां भी छुपी नहीं है। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन वो गृह निर्वाचन क्षेत्र में प्रियंका गांधी की सफल रैली आयोजित करने में भी सफल हो गए थे। हर्षवर्धन भी मंत्री नहीं बने,एक बार मुख्य संसदीय सचिव अवश्य बनाये गए थे।
उधर सबसे बड़े जिला कांगड़ा से वयोवृद्ध नेता व प्रदेश की कई सरकारों में मंत्री रहे चंद्र कुमार की छवि शालीन है। ओबीसी का बड़ा चेहरा है। काँगड़ा में वीरभद्र सिंह के सबसे पसंदीदा मंत्री रहे है। उनके साथ सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि वह लगातार चुनाव नहीं जीत पाए। बीच में उन्होंने अपने पुत्र नीरज भारती को मैदान में उतारकर विधायक बनाया। नीरज भारती का विवादों से नाता जुड़ा रहा। इस कारण चंद्र कुमार इस बार दोबारा मैदान में उतरे है। एक बार काँगड़ा से सांसद भी रहे है। प्रियंका गाँधी द्वारा उनका बायोडाटा मंगावए जाने से वो अचानक ही सीएम पद की रेस में आए। इससे पहले उनके नाम की कोई चर्चा नहीं थी। देखना है आलाकमान राजपूत प्रत्याशी को दरकिनार कर ओबीसी चेहरे को सीएम बनाने का जोखिम उठाता है या नहीं।