शिमला, 16 नवम्बर : इस विस चुनाव के बाद अगले 2027 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस व भाजपा के आधा दर्जन से ज्यादा नेता चुनावी परिदृश्य में नजर नहीं आएंगे। इनमें कुछ उम्मीदवार उम्रदराज हो जाएंगे तो कई लगातार चुनाव हारने के चलते विदाई के मुहाने पर पहुंच जाएंगे।
फिलहाल, हम जिन नेताओं का जिक्र कर रहे हैं, ये वो नेता हैं, जो उम्र के चलते चुनावी राजनीति में नजर नहीं आएंगे। इन नेताओं में सबसे प्रमुख नाम वयोवृद्ध नेता धनीराम शांडिल का आता है। वो अभी 80 पार कर चुके हैं। यदि वह चुनाव में जीते तो भी वह अगले चुनाव तक इस स्थिति में नहीं होंगे कि पार्टी उन्हें दोबारा उतारे।
वहीं, शहरी विकास मंत्री रहे सुरेश भारद्वाज भी शायद चुनावी राजनीति की अंतिम पारी खेल रहे हैं। उनको भी उम्र के दायरे के चलते चुनावी राजनीति से बाहर होना पड़ेगा। पच्छाद से गंगूराम मुसाफिर का भी शायद यह अंतिम चुनाव हो सकता है। यदि जीते तो भी और यदि हारे तो भी। ऐसे ही चंबा के भटियात से कांग्रेस के कुलदीप पठानिया व भाजपा के विक्रम जरियाल भी उम्रदराज नेताओं के गु्रप में आ जाएंगे।
हालांकि, कुलदीप पठानिया लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, वहीं जरियाल भी अगर जीते तो उनका यह अंतिम चुनाव हो सकता है।
मंडी के द्रंग से ठाकुर कौल सिंह का भी यह अंतिम चुनाव होगा, क्योंकिे वह भी 80 के करीब पहुंच चुके हैं। जिस तरह से राजनीतिक माहौल में वृद्ध नेताओं को दर किनार करने की शुरूआत हुई है, उस हिसाब से रामलाल ठाकुर जो नैना देवी से चुनाव लड़ रहे हैं, 70 से उपर होने के चलते चाहे वह जीते या हारे, अगला चुनाव उनका भी लड़ना मुश्किल नजर आ रहा है।
पांवटा साहिब से सुखराम चौधरी व किरनेश जंग भी शायद अंतिम विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि ये दोनों भी उम्र के उस पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं, जहां दोनों जीतने-हारने की स्थिति में भी 2027 में चुनावी परिदृश्य से बाहर होंगे।
बंजार से भाजपा के पूर्व अध्यक्ष खिमी राम दो बार लगातार चुनाव हारे हैं। उम्र के साथ-साथ अगर वो तीसरी बार भी हारे तो कुदरती दोनों प्रमुख पार्टियां उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाएंगी।
कुल्लू से महेश्वर सिंह हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव पर नजरें गड़ाए हैं, मगर विधानसभा चुनाव में अगली दफा वो भी नजर नहीं आएंगे। ज्चाली से कांग्रेस उम्मीदवार चंद्र कुमार भी काफी उम्रदराज हैं। चुनाव जीतने की सूरत में भी वह 80 के करीब पहुंचने वाले हैं। अगली दफा पार्टी उन्हें शायद ही चुनावी मैदान में उतारे।
ठियोग से लड़ने वाले राकेश सिंघा, कांग्रेस के कुलदीप राठौर, रोहडू से मोहन लाल बरागटा व रामपुर से नंद लाल का, किन्नौर से कांग्रेस के जगत सिंह नेगी भी इस सूची में शामिल हैं।देहरा से रमेश ध्वाला भी इस बार चाहे जीते या हारें, वो भी चुनावी राजनीति से बाहर हो जाएंगे।
हालांकि, अगले चुनाव में इनमें से कोई भी निर्दलीय लड़ सकता है। ईश्वर करे, सभी का स्वास्थ्य अच्छा रहे। मगर 2027 के चुनाव में इनके चर्चे ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय रहेंगे।
कुछ चुनाव से पहले ही हुए बाहर…
कुछ उम्मीदवार चुनाव से पहले ही टिकट कटने के चलते चुनावी दौड़ से बाहर हो चुके हैं। इनमें उना के चिंतपूर्णी से कुलदीप कुमार, कांगड़ा से भाजपा के पूर्व सांसद कृपाल परमार, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, शिमला से विद्या स्टोक्स, कांगड़ा के थुरल से चंद्रेश कुमारी ऐसे नाम हैं, जो उम्र के तकाजे के चलते विधानसभा चुनाव से पहले ही चुनावी राजनीति से रिटायर हो चुके हैं।
इन नेताओं में सबसे सम्मानजनक विदाई धर्मपुर से लगातार 7 बार विधायक रहे निवर्तमान मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने ली। उन्होंने बिना हार का टैग लगाए, 2022 के विधानसभा चुनाव से अपने पुत्र को विरासत सौंप कर चुनावी राजनीति को अलविदा कह दिया।