नाहन, 28 दिसंबर : इसमें कोई दो राय नहीं है, 40 मैगावाॅट की श्री रेणुका जी बांध परियोजना राष्ट्रीय महत्व (national importance) का प्रोजैक्ट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा इसका शिलान्यास किए जाने के बाद ये परियोजना राष्ट्रीय पटल (national board) पर भी चर्चा में आ गई है। लेकिन इससे इसके अतीत से जुडे़ कुछ ऐसे पहलू हैं, जो श्री रेणुका जी बांध परियोजना के विस्थापितों के जहन में भी मौजूद हैं। साथ ही उन प्रशासनिक अधिकारियों को भी बखूबी याद हैं, जिन्होंने इसकी जांच की थी।
दरअसल, नवंबर 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के समक्ष ये मामला उठाया गया था कि विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बेहद ही नकारा जमीन को बिचौलियों से बेशकीमती दामों पर खरीद लिया गया है। तुरंत ही बतौर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने तत्कालीन उपायुक्त विकास लाबरू को जांच के आदेश दिए थे। एडीएम के स्तर पर जांच भी हुई।
सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी द्वारा की गई लंबी जांच में कई तरह की अनियमितताओं के खुलासे हुए थे। इसमें ये भी पता चला था कि टोकियो में नदी के किनारे ही करोड़ों की जमीन खरीद ली गई। अम्बोया में वो जमीन पावर काॅर्पोरेशन (Power Corporation) ने पुनर्वास के लिए खरीदी, जिसके एग्रीमेंट भू मालिकों द्वारा पहले जिंदल समूह के साथ किए गए थे। ये अलग बात है कि जिंदल समूह का प्रोजैक्ट सिरे नहीं चढ़ा था। चाकली में भी बेकार जमीन को करोड़ों में खरीदा गया।
सूत्रों का ये भी कहना है कि एडीएम की जांच के आधार पर ही सरकार ने विजिलेंस को मामले सौंपे थे। ये भी खुलासा हुआ था कि राजस्व अधिकारियों ने अधिकृत हो रही भूमि की किस्मों को बदल दिया था, ताकि इसके लिए कई गुणा मुआवजे की अदायगी हो सके। हैरान कर देने वाली बात ये है कि 9 साल बाद भी इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है।हालांकि, आधिकारिक पुष्टि नहीं है, लेकिन बताते हैं कि उस जांच रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में ही डाल दिया गया।
दीगर है कि जमीनों की खरीद में कथित हेराफेरी को लेकर स्टेट विजिलेंस व एंटी क्रप्शन ब्यूरो (State Vigilance and Anti Corruption Bureau) ने भी पांच मामले दर्ज किए थे। अहम सवाल ये था कि जिनके लिए पावर काॅर्पोरेशन ने करोड़ों रुपए खर्च कर जमीन खरीदी थी, वो उस जमीन में बसना ही नहीं चाहते थे। 2013 में ही पुनर्वास का तर्क देकर पावर काॅर्पाेरेशन ने 18 करोड़ रुपए खर्च कर दिए थे। स्पष्ट नहीं है, लेकिन बताया जा रहा है कि पावर काॅर्पोरेशन द्वारा बिचैलियों को ही कथित रूप से मोटी रकम की अदायगी की गई। उस वक्त ये भी चर्चा थी कि नेताओं की भी पौ बारह हुई है।
ये भी आरोप लगा था कि प्रभावशाली लोगों व नेताओं ने किसानों से औने-पौने दामों पर जमीन को खरीदने के बाद मोटी कीमतों पर पावर काॅर्पोरेशन को बेच दिया। सवाल इस बात पर भी था कि पावर काॅर्पोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों ने क्यों आंखें मूंद रखी थी। उल्लेखनीय है कि डैम प्रबंधन ने उबड-खाबड़ 86 बीघा जमीन खरीदने पर ही पौने 4 करोड़ रुपए खर्चे थे।
बता दें कि विजिलेंस की जांच में भू खरीद के मामले के कथित फर्जीवाडे़ की प्रारंभिक जांच में चार अधिकारी लपेटे में आए थे। अधिकारियों पर धोखाधड़ी व आपराधिक षडयंत्र (Fraud and criminal conspiracy on officials) रचने की धाराओं में मामले भी दर्ज हुए। कुल मिलाकर करोड़ों रुपए के कथित गोलमाल को लेकर आज तक भी कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। ये ठीक है कि रेणुका बांध परियोजना अब दशकों बाद निर्माण शुरू होने की स्थिति में आ गई है, लेकिन उन मामलों का क्या, जो हेरा-फेरी को लेकर सामने आए थे।
उधर, एमबीएम न्यूूज नेटवर्क ने श्री रेणुका बांध परियोजना के महाप्रबंधक रूप लाल से स्थिति स्पष्ट करने को लेकर संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन हमेशा की तरह उन्होंनेे फोन रिसीव नहीं किया।