नाहन, 05 दिसंबर : पांवटा साहिब-देहरादून हाईवे पर इन दिनों ‘चकोतरे’ का स्वाद बिखरा है। हालांकि उत्तराखंड में दाखिल होने के बाद देहरादून हाईवे पर कुछ चुनिंदा जगहों पर चकोतरे को बेचने वाले नजर आ सकते हैं, लेकिन अगर आप देहरादून के सफर पर आसन बैराज की तरफ से जाते हैं तो खास चकोतरे मिल सकते हैं। दशकों से आसपास के ग्रामीण आसन झील के नजदीक ही इसे सर्दियों मंे बेचते मिलते हैं।
दिलचस्प बात ये भी है कि चकोतरे बेचने वाले ऐसी जगह मौजूद होते हैं, जहां पर झील व नहर का विहंगम दृश्य मन को लुभा लेता है। इस बार तीन किलो तक वजनी चकोतरे भी मिल रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक इसका आकार कम करने में लगे हुए हैं, ताकि इसके जायके में ओर बढ़ावा हो सके। नींबू की प्रजाति का लार टपकाने वाला ये फल, अक्तूबर में शुरू होता है और फरवरी के आखिर में मार्किट से दिखना बंद हो जाता है। इस फल के जूस का एक गिलास विटामिन सी के स्तर को बढ़ा देता है। ये पूरी तरह से कुदरती फल है।
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ऐसा भी माना जाता है कि उच्च मात्रा का फाइबर होने की वजह से ये फल भूख को कम करने का काम भी करता है। हिमाचल की सीमा से सटे उत्तराखंड के कुछ इलाकों में चकोतरे के पेड़ मौजूद हैं। चकोतरा बेचने वाले एक शख्स ने एमबीएम न्यूूज नेटवर्क को बताया कि उनकी उम्र 65 साल हो चुकी है। 17 साल की उम्र से इस फू्रट का सेवन कर रहे हैं। उनका कहना था कि 2020 में कोविड संकट के कारण चकोतरे की फसल को भी नुकसान पहुंचा था।