नाहन, 06 सितंबर : ऐतिहासिक शहर में ट्रैफिक के बोझ को सुरंग हल्का करेगी। हालांकि, इस पर कोई अंतिम मुहर नहीं लगी है, लेकिन केंद्रीय परिवहन व भूतल मंत्रालय (Union Ministry of Transport and Surface) ने हिमाचल के लोक निर्माण विभाग के एनएच विंग (NH Wing) के माध्यम से सुरंग (Tunnel) के निर्माण को लेकर परियोजना प्रबंधन परामर्श (project management consultancy) के टैंडर आमंत्रित किए हैं। इस कार्य पर 5 करोड़ की राशि खर्च होगी। कंसलटेंसी सेवा (consultancy service) देने वाली कंपनी को चार महीने के भीतर डीपीआर (DPR) भी बनानी होगी।
इस सुरंग के निर्माण को पूरा करने का लक्ष्य 24 महीने होगा। साथ ही 10 साल की मेंटेनेंस भी शामिल की गई है। कंसलटेंसी देने वाली कंपनी सुरंग के निर्माण से पूर्व होने वाली गतिविधियों (activities )का आकलन भी करेगी। टू लेन टनल (Two Lane Tunnel) की दूरी करीब 1400 मीटर मानी जा रही है। राज्य के नेशनल हाईवे विंग (National Highway Wing) के चीफ इंजीनियर (Chief Engineer) ने इस कार्य को लेकर विज्ञापन (Advertisement) भी प्रकाशित करवा लिए हैं। कंसलटेंसी कंपनियां, 4 अक्तूबर 2021 तक इस कार्य के लिए आवेदन कर सकेंगी। 6 अक्तूबर 2021 को टैंडर खोले जाएंगे।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क द्वारा कुछ अरसा पहले शहर में सुरंग के निर्माण से जुड़ी खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी। अब माना जा रहा है कि खबर के प्रकाशन के बाद भी हरकत हुई है। इसके अलावा कुछ समय पहले मोहल्ला गोविंदगढ़ से बनोग तक लोगों ने एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था, इसमें ये मांग की गई थी कि हाईवे को शहर के बीचोंबीच से न निकाला जाए। उस समय ऐसे क्यास लगाए जाने लगे थे कि पैमाइश (measurement) की वजह शहर के बीच से ही हाईवे का निर्माण है।
रोचक बात ये है कि सुरंग के निर्माण के अलावा कोई विकल्प (Option) भी नजर नहीं आ रहा था। बावजूद इसके कोई एक्शन नहीं हो रहा था। अब सवाल उठता है कि सुरंग ही क्यों विकल्प है। दरअसल, दो दशकों से प्रस्तावित बाईपास (Proposed Bypass) के निर्माण का मामला सैन्य भूमि के बीच में पड़ने के कारण अटका हुआ है। कांशीवाला से बनोग तक बाईपास का निर्माण होना था। बनोग से धारक्यार तक सड़क बनी भी, लेकिन दोनों सिरो को जोड़ना मुमकिन नहीं हो पा रहा था, क्योंकि आर्मी लैंड बीच मंे है। वहीं, दूसरी तरफ अगर नवोदय स्कूल के समीप से भी बाईपास बनाया जाता तो उस स्थिति में चीड़ के जंगलों का बड़े स्तर पर कटान करना पड़ता।
इसके अलावा वन आरक्षित भूमि (forest reserve land) से पेड़ों के बड़े स्तर पर कटान की अनुमति भी आसान नहीं हो सकती थी। कुल मिलाकर सुरंग एक बेहतरीन विकल्प था।
उधर, जानकारों ने एमबीमएम न्यूज नेटवर्क को बताया कि कंसलटेंसी कंपनी (consultancy company) हर पहलू से सुरंग के निर्माण का अवलोकन (Observation) करने के बाद रिपोर्ट विभाग को सौंपेगी। ये भी साफ है कि यदि तेजी से कदम आगे बढ़ाए जाते हैं तो सुरंग के निर्माण को तीन से चार साल का वक्त तो लगेगा ही।