मंडी, 03 अगस्त : कोरोना काल में ऑक्सीजन संकट ने देश के कोने-कोने में तांडव मचाया लेकिन 70 लाख की आबादी वाले देव भूमि हिमाचल में ऑक्सीजन की ज्यादा कमी देखने को नहीं मिली। उल्टा प्रदेश में ऑक्सीजन की अधिकता को देखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को विकट परिस्थिति में मदद करने का आश्वासन दिया था। अब पता चला है कि राज्य को 1 जनवरी 2021 से 31 मई 2021 के मध्य 1801 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मदद केंद्र सरकार से प्राप्त हुई थी। यह जानकारी आरटीआई के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ता सुजीत स्वामी ने मुहैया करवाई है।
जनवरी से मई तक कुछ इस तरह से मिली ऑक्सीजन
एक्सप्लोसिव विभाग के डिप्टी कंट्रोलर की तरफ से दी गई जानकारी से पता चला कि हिमाचल प्रदेश को सबसे ज्यादा मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई मई माह में दी तो सबसे कम सप्लाई फरवरी माह में दी गई। प्रदेश को केंद्र सरकार द्वारा जनवरी माह में कुल 265.17 मीट्रिक टन, फरवरी माह में कुल 218.11 मीट्रिक टन, मार्च माह में कुल 224.47 मीट्रिक टन, अप्रैल माह में 354.09 मीट्रिक टन एवं मई माह में 739.39 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई दी गई। इन पांच महीनो में 23 मई को 35.38 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देकर सबसे ज्यादा सप्लाई गई , जबकि सबसे कम 4.22 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई 10 मार्च को गई ।
प्रदेश में एवरेज मेडिकल ऑक्सीजन सप्लाई जनवरी माह की 8.55 मीट्रिक टन, फरवरी माह की 7.79 मीट्रिक टन, मार्च माह की 7.24 मीट्रिक टन, अप्रैल माह की 11.803 मीट्रिक टन एवं मई माह की 23.86 मीट्रिक टन रही। वहीं इन पांच महीनो में हिमाचल प्रदेश के समकक्ष माने जाने वाले राज्य जम्मू कश्मीर को 1973.17 मीट्रिक टन, उत्तराखंड को 8055.79 मीट्रिक टन, हरियाणा को 12586 मीट्रिक टन एवं पंजाब-चंडीगढ़ को 16107.58 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई केंद्र द्वारा दी गई।
सुजीत स्वामी का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान पूरे देश में ऑक्सीजन संकट गहराया था, लेकिन हिमाचल प्रदेश में अच्छी व्यवस्था एवं आम जन की जागरूकता के कारण ऑक्सीजन संकट देखने को नहीं मिला। लोगों को उचित चिकित्सा व्यवस्था एवं मेडिकल फैसिलिटी समय पर मिलने के ऑक्सीजन की कमी के ज्यादा मरीज देखने को नहीं मिले और इस वजह से ही केंद्र से मिली इतनी कम सप्लाई को भी सरप्लस में बदल दिया गया। लोगो की जागरूकता, सरकार-प्रशासन की व्यापक देखरेख से ही हिमाचल को इस भयंकर आपदा का सामना नहीं करना पड़ा, यदि ऐसा होता तो परिणाम बहुत ही खतरनाक हो सकता था, क्योकि बिना रेलवे ट्रैक एवं दुर्गम रास्तों के जरिये मदद को मिलने में मुश्किल हो सकती थी।