शिमला, 7 मार्च : राजधानी के प्रतिष्ठित राजकीय कन्या महाविद्यालय में पढ़ रहीं शालिनी, किरण, प्रिया और मोनिका हों या मुस्कान, इतिका, ज्योति, इंदू, संगीता, कुसुम, शगुन, अन्जना, निशा, पूनम, वीना, आशा, विद्या, सूमा और चन्द्र्मणी।
खास बात यह है कि ये दृष्टिबाधित बेटियां अपनी प्रतिभा और लगन के पंखों के सहारे आसमान छूने की जद्दोजहद में लगी हैं। यह सभी कंप्यूटर पर टॉकिंग सॉफ्टवेयर के सहारे सभी काम कर लेती हैं। यही नहीं मोबाइल से फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और ट्विटर भी चलाती हैं।
ये बात अलग है कि अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women day) समारोहों के शोर में उनके अधिकारों (Rights) से जुड़े मुद्दे कहीं दब जाते हैं। उन्हें शिक्षण संस्थानों( Admission) में दाखिले के साथ ही हॉस्टल और बाधारहित वातावरण भी चाहिए।
पढ़ाई के लिए उन्हें आवश्यक सहायक उपकरण, लैपटॉप व टॉकिंग सॉफ़्टवेयर एक अनिवार्यता हैं, ताकि वे ई- बुक्स सुन कर पढाई कर सकें। इन सुविधाओं से लैस सुगम्य उन्हें चाहिए। अभी तक सरकार का ध्यान उनकी इस आवश्यकता की ओर नहीं गया है।
राजकीय कन्या महाविद्यालय के हॉस्टल में रह कर बीए कर रही चार दृष्टिबाधित (Visually impaired) छात्राओं (Students) में से तीन शालिनी, मोनिका और प्रिया बीपीएल परिवार की हैं और पूर्णता दृष्टिहीन हैं।इन बेटियों के सपनों को पंख देने के लिए उमंग फाउंडेशन आगे आई है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि दृष्टिबाधित विद्यार्थियों, विशेषकर छात्राओं को उनकी संस्था पिछले 14 वर्षों से छात्रवृत्ति, लैपटॉप एवं अन्य उपकरण देकर पढ़ाई में मदद कर रही है। इनमें से अनेक दृष्टिबाधित बेटियां नौकरी में भी आ गई हैं।
पोर्टमोर स्कूल से 84.60 प्रतिशत अंक लेकर 12वीं पास करने वाली चंबा के दूरदराज क्षेत्र की पूर्णतः दृष्टिहीन शालिनी ने आरकेएमवी शिमला में बीए में दाखिला लिया है। राजनीति विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाली इस छात्रा का सपना एचएएस अधिकारी बनना है।
किन्नौर की मोनिका ने सुंदरनगर के विशेष विद्यालय से 63 प्रतिशत अंकों से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह इतिहास की सहायक प्रोफेसर बनना चाहती है। उधर सराहन के कुरुगू गांव की प्रिया भी प्राध्यापक बनने का सपना संजोए हुए है।
जुब्बल के गांव बरथाटा की किरण की विकलांगता 75% है। वह स्कूल लेक्चरर बनना चाहती है।कोरोना के कारण सरकार ने बीए प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को फिलहाल हॉस्टल की सुविधा न देने का फैसला किया था। इससे सबसे ज्यादा दिक्कत दृष्टिबाधित बेटियों को हो सकती थी।
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य प्रो. श्रीवास्तव ने आरकेएमवी की प्रधानाचार्य से अनुरोध कर उन्हें हॉस्टल दिलवा दिया।
हॉस्टल की वार्डन डॉ. ज्योति पान्डे कहती हैं कि ये छात्राएं अनुशासित (Diciplined) हैं और अपने काम स्वयं(self dependent) करने में विश्वास करती हैं।लेकिन आवश्यकता पढ़ने पर हॉस्टल की संवेदनशील छात्राएं उनकी मदद को भी तत्पर रहती हैं।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी कर रही मुस्कान हो या पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी की छात्रा इतिका चौहान, अथवा एमटेक की विद्यार्थी ज्योति नेगी, देख पाने में दिक्कत उनके जज़्बे को कमज़ोर नहीं कर पाई।
इसी तरह रामपुर कॉलेज में चंद्रमणी, आशा, विद्या और सूमा देवी की हिम्मत उन्हें आगे बढ़ा रही है। हालांकि बार-बार आग्रह किए जाने के बावजूद कॉलेज प्रबंधक ने सुगम में पुस्तकालय बनाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
विश्वविद्यालय में दो वर्ष पूर्व सुगम्य में पुस्तकालय का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर दृष्टिबाधित विद्यार्थियों को कंप्यूटर पर काम करते देख हैरान रह गए थे। उन्होंने मंच से वादा किया था की हर स्कूल और कॉलेज में जहां दृष्टिबाधित विद्यार्थी पढ़ते हैं सुगम्य पुस्तकालय बनाए जाएंगे। लेकिन इस दिशा में आगे कुछ नहीं हुआ।
प्रो अजय श्रीवास्तव का कहना है कि दृष्टि बाधित होने के बावजूद इन बेटियों ने हार नहीं मानी और जिंदगी में कुछ करके दिखाने की कोशिशों में लगी हुई हैं। उमंग फाउंडेशन हर कदम पर उनका साथ देता है। उससे जुड़ी हुई मुस्कान सभी के लिए एक मिसाल बन कर सामने आई है। वह बेहतरीन गायिका है, भारतीय चुनाव आयोग ने उसे वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना ब्रांड एंबेसडर (Brand Ambassador) बनाया था। एक फेलोशिप के माध्यम से वह अमेरिका तक में अपने सुरों के जादू से हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन कर आई।