सोलन, 26 फरवरी : अमीरों के भोजन की थाली की शान “गुच्छी” अब आम आदमी की पहुंच में भी आ सकती है। यह अलग बात है कि चंद बरस लग सकते हैं। आप यह जानकर बेहद ही रोमांचित हो जाएंगे कि आज तक केवल कुदरती तौर पर जंगलों या बगीचों में पाई जाने वाली गुच्छी (Morchella) को खुम्ब अनुसंधान निदेशालय (Directorate of Mushroom Research) सोलन ने कृत्रिम तौर पर नियंत्रित परिस्थितियों में उगाने में सफलता हासिल की है। गुच्छी की वानस्पतिक नाम (Botanical name) मोरचेला एसक्योेलेंटा (Morchella Esculenta) है।
भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र(Indian Council of Agriculture Research) ने निदेशालय की स्थापना 1983 में की थी। तब से ही गुच्छी के कृत्रिम उत्पादन (Artificial Production) को लेकर कोशिशें की जा रही थी। लेकिन अब ऐसी सफलता (Success) हासिल हुई है, जिससे भारत भी उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो कृत्रिम तौर पर गुच्छी को उगाने का दावा करते हैं।
बता दें कि यूएसए (USA) व चीन द्वारा कृत्रिम गुच्छी को उगाने का दावा किया जाता है। देवभूमि हिमाचल की बदौलत गुच्छी उत्पादन के शोध में भारत का मान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा है। साथ ही वो मिथ्या भी गलत साबित कर दी गई है, जिसमें कहा जाता था कि केवल आसमान में बिजली कड़कने (Lightning) के दौरान ही जंगलों में गुच्छी कुदरती तौर पर (Naturally) निकलती है।
दीगर है कि मशरूम (Mushroom) की प्रजाति गुच्छी को विश्व की सबसे महंगी सब्जी (Expensive Vegetable) के रूप में पहचाना जाता है। अब अगर खुम्ब अनुसंधान निदेशालय के प्रयासों को सफलता हासिल होती है तो वो दिन दूर नहीं, जब किसान भी गुच्छी को अपने खेतों में उगा सकेंगे। 2019 में निदेशक डाॅ. वीपी शर्मा ने गुच्छी उत्पादन शोध (Research) की जिम्मेदारी डाॅ. अनिल कुमार को दी थी। इसके बाद एक प्रोजैक्ट (Project) पर कार्य शुरू किया गया था।
ऐसे मिली कामयाबी..
खुम्ब अनुसंधान निदेशालय द्वारा ठीक उस तरह की नियंत्रित परिस्थितियों (Controlled conditions) को तैयार किया गया, जैसा कुदरती (Natural) तौर पर होता है। खुम्ब अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डाॅ. वीपी शर्मा ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कहा कि कुदरती तौर पर ऐसे माहौल में गुच्छी पैदा होती है, जब दिन का तापमान (Temperature) 16 से 18 डिग्री के बीच हो तो रात को तापमान 7 से 8 डिग्री गिरना चाहिए। जमीन से निकलने के वक्त तापमान 16 स 18 डिग्री ही होना चाहिए।
निदेशालय द्वारा पहले सीड़ (Seed) तैयार किया गया। आधा सैंटीमीटर तक गुच्छी पैदा हुई। इसके बाद तैयार सीड के लिए जमीन में भी अलग-अलग तरीकों से परत (Layer) तैयार हुई। 13 अप्रैल 2020 को भी 10 से 13 सैंटीमीटर तक गुच्छी तैयार हो गई थी, लेकिन इस साल काफी उत्साहवर्द्धक नतीजे (Encouraging results) सामने आ रहे हैं।
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एमबीएम न्यूज से बातचीत में निदेशक ने यह भी माना कि भारत में पहली बार गुच्छी के उत्पादन का सफल प्रयोग (Experiment) किया गया है। इससे पहले यूएसए व चीन द्वारा ही गुच्छी को उगाने का दावा किया जाता रहा है। चूंकि फसल तैयार होने में अभी 30 से 60 दिन का समय बाकी है, यही कारण माना जा रहा है कि ग्रीन हाऊस में नियंत्रित तापमान में इसके ओर बेहतरीन परिणाम सामने आ सकते हैं।
निदेशक का ये भी कहना है कि किसानों तक इसे पहुंचाने के लिए कई तकनीकों व शोधों (Technique & research) पर कार्य करना होगा। कुल मिलाकर इतना तय है कि अगले दो-तीन वर्षों में भारत में मशरूम उत्पादन के सैक्टर में इस सफलता से नई क्रांति आएगी।
ये है खासियत…
गुच्छी एक तरह का क्वक है, जिसके फूलों या बीजकोश (Seed cell) के गुच्छों की तरकारी बनती है। बेजोड़ स्वाद के साथ-साथ कई औषधीय गुणों से भरपूर होती है। हिमाचल के कुल्लू-मनाली, शिमला, चंबा व सिरमौर में ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है। गुच्छी में प्रोटीन (Protein), फैट (Fat), फाइबर (Fiber) व कार्बोहाइड्रेटस (Carbohydrate) पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए काफी पोषक (Nutritious) होते हैं।
निदेशालय के निदेशक डाॅ. वीपी शर्मा ने एमबीएम न्यूज से बातचीत में ये भी कहा कि नैचुरल व कृत्रिम (Natural & Artificial) तौर पर गुच्छी के गुणों की तुलना (Comparison) भी की जाएगी। गुच्छी के इस्तेमाल से सूजन रोधी दवा (Anti inflammatory medicine) )भी तैयार की जाती है। इसके अलावा क्षय (Tuberculosis) व गठिया रोग (Arthritis) के लिए भी रामबाण है।