रोनहाट, 17 दिसंबर : सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र और समीपवर्ती इलाकों में पर्यावरण संरक्षण के लिए अहम माने जाने वाले गिद्ध (वल्चर) की लगातार घटती संख्या चिंता का विषय बन गई है।गिद्धों (Vulture) की घटती संख्या को पर्यावरण संतुलन के लिए एक बड़ा खतरा माना जा रहा है। गिद्धों की प्रजातियां विलुप्त (Extinct) होने की कगार पर है।
पर्यावरणविदों (Environmentalists) की माने तो पर्यावरण में संतुलन(Balance) बनाने के लिए गिद्ध काफी अहम है, क्योंकि गिद्ध खुद पर्यावरण को साफ बनाने का काम करते है। खुले में किसी भी जानवर के मरने के बाद गिद्ध इसे अपना भोजन बनाकर पर्यावरण को साफ और सुथरा बनाने में अहम योगदान (Contribution) देते है। लेकिन इनके दुर्लभ होने के बाद पर्यावरण में संक्रमण का खतरा बना रहता है।
केंद्रीय जु अथॉरिटी (Central Zoo Authority) ने करीब 17 वर्ष पहले इस सिलसिले में हिमाचल को सचेत किया था। जिसमें कहा गया था कि यदि हिमाचल में गिद्धों की संख्या इसी तरह कम होती रही तो ये पर्यावरण संतुलन के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि इसके बाद वर्ष 2004 के बाद से इनके संरक्षण (Protection) के लिए कार्य शुरू किया गया। वाइल्ड लाइफ विंग ने गिद्धों की संख्या को बढ़ाने के लिए इनके प्रजनन (Breeding) पर ध्यान दिया। जिसके लिए जंगलों में कृत्रिम घोंसले (Artificial Nest) बनाए गए और ऐसी जगह चिन्हित की गई जहां आग लगने का खतरा कम हो।
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वाइल्ड लाइफ विंग के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन सिरमौर ज़िला के गिरिपार क्षेत्र में गिद्धों की संख्या सरकारी आंकड़ों से बेहद अलग है। करीब 20 साल पहले तक गिरिपार के आसमान में जहां सैकड़ों की संख्या में गिद्धों का समूह ऊंची उड़ान भरते नजर आता था। वहीं अब इक्का-दुक्का गिद्ध भी बड़ी मुश्किल में नजर आते है।
भारत में लगभग हर प्रजाति के गिद्ध पाए जाते है। इनमें यूरेशियन ग्रिफन, हिमालयन ग्रिफन, व्हाइट बेक्ड और सलेंडर विल्ड जैसी प्रजातीय(Species) प्रमुख है। अब देश के सभी क्षेत्रों में इन सभी प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट छा गया है। मसलन यूरेशियन ग्रिफन, हिमालयन ग्रिफन, व्हाइट बेक्ड और सलेंडर विल्ड प्रजातियों की अच्छी संख्या वाले राज्यों में शुमार हिमाचल प्रदेश में भी अब इन्हें वन्य प्राणियों की सूची में क्रिटिकली एंड डेंजर्ड (Critical Endangered) घोषित कर दिया गया है। वर्ष 2020 के जाते-जाते स्थिति यह बन गई है की हिमाचल में गिद्ध नाममात्र के ही रह गए है। कई स्थानों में तो ये अब नजर आना ही बंद हो गए है।
खड़काह गांव के 101 वर्षीय सुरजन शर्मा और थुम्बाड़ी गांव के 94 वर्षीय मनी राम पराशर आदि पर्यावरणविदों ने कहा कि पहले क्षेत्र में गिद्धों की भरमार हुआ करती थी। मृत पशुओं के अवशेषों (Remains) को गिद्धों का झुंड कुछ ही घंटों में साफ कर देता था। इससे पर्यावरण भी साफ रहता था मगर अब हालात बदल गए है। पर्यावरणविदों ने बताया कि सरकार और संबंधित विभाग को इस और ध्यान देना चाहिए ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे।