हमीरपुर, 15 अगस्त: हिमाचल से ब्रिटिश(British) हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ यहां के लोगों ने आंदोलन का जो बिगुल बजाया। उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी। जब.जब स्वतंत्रता संग्राम पर बात की जाती है तो पहाड़ के जांबाजों का जिक्र विशेष तौर पर किया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) के साथ कदम से कदम बढ़ाने वाला हिमाचली सुपूत देश सेवा में किसी भी मायने में कम नहीं है। चाहे कारगिल का युद्ध हो या फिर सीमा पर आतंकवाद से मुकाबला हिमाचल के लोग हर क्षेत्र में देश की रक्षा के लिए बलिदान दे रहे हैं। इसी तरह से हमारे प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी भी हैं । जिन्होंने अपना अहम योगदान देश को आजादी दिलाने में दिया है। स्वतंत्रता संग्राम(Freedom Struggle) में भूमिका निभाई है। हिमाचल प्रदेश में 915 स्वतंत्रता सेनानी परिवार हैं। जो कि सरकारी रिकार्ड में दर्ज हैं। इन परिवारों को सरकार कई सुविधाएं देने का दावा कर रही है मगर वर्तमान दौर में ये सुविधाएं इनके लिए नाकाफी मानी जा रही है। हर साल सरकार स्वतंत्रता सेनानियों व उनके परिवारजनों को दी जाने वाली पेंशन में बढ़ोतरी करती है लेकिन ये लोग वर्तमान हालातों में इसे पर्याप्त नहीं मानते और सरकार से इस राशि को अधिक बढ़ाने की मांग गाहे.बगाहे करते रहते हैं।
शहादत का आंकड़ा…
1. आजाद हिंद फौज -131
2. दित्तीय विश्व युद्ध – 43
3. 1962 युद्ध – 131
4. 1965 युद्ध – 199
5. 1971 युद्ध – 195
6. आतंकी घटनाएं- 373
7. शांति के समय -261
7. शांति के समय -261
आजादी की खातिर फांसी पर झूल गए कुल्लू के वीर.प्रताप…
देवभूमि कुल्लू वीरों की भी भूमि है। यहां पर स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान पर खेलकर देश की आजादी में अपनी अहम भूमिका को निभाया है। कुल्लू के लगघाटी के रोपड़ी गांव से संबंध रखने वाले नवल ठाकुर भी देश के उन स्वतंत्रता सेनानियों में आते हैं जिन्होंने अपने कई साल देश की खातिर जेल में काटे। आज भी नवल ठाकुर गांव में आजादी के किस्सों को सुनाते हैं। नवल ठाकुर आजादी के आंदोलन में स्कूल से भाग कर हिस्सा लिया करते थे। आजादी के दौरान कुल्लू में संघ के आदेश पर सभी लोग ढालपुर में इक्कठे हुए थे। उस दौरान नवल ठाकुर भी यहां पर आए लेकिन फिरंगियों ने अचानक गोलियां बरसानी शुरू कर दी। नवल ठाकुर एक दम से कूड़ेदान में छिप गए लेकिन लगवैली के करीब सात युवकों को गोलियां लग गईं। 15 अगस्त 1947 को आजादी का कुल्लू में सबसे पहले तिरंगा सेवानिवृत्त तहसीलदार किशन सिंह ने ढालपुर में फहराया था।
पहाड़ी बुलबुल ने गीतों,कविताओं से जगाया देश….
भारत को आजादी दिलाने में जिला कांगड़ा के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान कम नहीं है । भारत को आजादी न मिल जाने तक पहाड़ी गांधी कहे जाने वाले कांशी राम ने काले कपड़े पहनने की शपथ ली थी। पहाड़ी गांधी की देश की आजादी में अहम भूमिका रही थी। सरोजनी नायडू द्वारा पहाड़ी बुलबूल और इंडिया की बुलबुल के खिताब से नवाजे गए कांशी राम ने अपने पहाड़ी गीतों और कविताओं से पहाड़ी राज्य हिमाचल और देश को आजादी के लिए जगाने में सराहनीय प्रयास किए। 1930 और 1942 के बीच उन्हें नौ बार गिरफ्तार किया गया। वहीं वजीर राम सिंह पठानियां का योगदान भी स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय है। कैप्टन दल बहादुर थापा के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता । वहीं आजाद हिंद फौज के सिपाही और संगीतकार कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने भारत के राष्ट्र गान जन गन मन की धुन तैयार की है। पश्चिमोत्तर प्रांत में अपनी वीरता के लिए किंग जार्जण्पांच मैडल प्राप्त किया। सुभाष चंद्र बोस ने जापान में उनकी मुलाकता के दौरान वायलिन दिया। जिसे वह हमेशा अपने पास रखते
थे।
ऊना के लक्ष्मण दास ने देश की खातिर छोड़ दी थी नौकरी…..
स्वतंत्रता संग्राम में ऊना के स्वतंत्रता सेनानी बाबा लक्ष्मण दास आर्य की अहम भूमिका रही है। बाबा लक्ष्मण दास आर्य की पत्नी माता दुर्गाबाई आर्य व दोनों पुत्रों सत्य मित्र बख्शी व सत्य भूषण शास्त्री ने भी स्वाधीनता संग्राम में अपना रोल अदा किया। जबकि ओयल के महाशय तीर्थ राम ने भी स्वाधीनता आंदोलन में बढ़ण्चढ़कर भाग लिया। महाशय तीर्थ राम ने महात्मा गांधी जी से प्रेरित होकर खादी को अपनाया तथा ताउम्र खादी के प्रचारण्प्रसार में लगे रहे। बाबा लक्ष्मण दास सहपाठी सरदार अजीत सिंह के जरिए लाला लाजपत मिले। लाला जी की उत्प्रेरणा से सरदार अजीत सिंह 1905 में ऊना आए तथा बाबा लक्ष्मण दास से आह्वान किया कि आजादी पाने के लिए सभी नौजवानों को आंदोलन में कूदना होगा। लिहजाएबाबा लक्ष्मण दास ने तत्काल पुलिस सेवा का परित्याग किया। इधर सरदार अजीत सिंह के आग्रह पर माता दुर्गाबाई आर्य ने सहपरिवार स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का ऐलान कर दिया तथा उसके नेतृत्व में महिलाओं को जागरूक करने और स्वदेशी के पक्ष में आजादी की लहर शुरू हो गई।
दौलतराम ने अंग्रेजों को दी थी चुनौती…
पराधीनता की बेडिय़ों से आजादी दिलाने के लिए बिलासपुर जिला के 332 स्वतंत्रता सेनानियों ने विभिन्न आंदोलनों में हिस्सा लिया। आजादी की इस लड़ाई में बिलासपुर के महान स्वतंत्रता सेनानी दौलतराम सांख्यान के संघर्ष को आखिर कौन भुला सकता है। बिलासपुर में प्रजामंडल का गठन कर दौलतराम सांख्यान ने ब्रिटिश सरकार को सीधी चुनौती देकर कई मुश्किलें खड़ी कर दीं थी। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इस मुहिम के लिए कई यातनाएं दीं। अंग्रेजी सरकार ने उनकी चलण्अचल संपत्ति तक जब्त कर ली थी। इतना ही नहीं 11 जून 1946 से 12 अक्तूबर 1948 तक रियासत से निष्कासित कर दिया गया। इसके बावजूद स्वतंत्रता संग्राम के इस सेनानी ने हार नहीं मानी।
गोडसे को पकडऩे वाले सार्जेंट आफिसर देवराज का परिवार गुमनामी में…
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को तत्कालीन मौके पर दबोचने वाले अशोक चक्र विजेता नाहन के सार्जेंट देवराज ठाकुर का परिवार आज गुमनामी में है। वर्ष 1948 की 30 जनवरी की तिथि सार्जेंट देवराज के परिजन अब भी याद कर अपने बहादुर बेटे को याद करते हैं। इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति डाण्राजेंद्र प्रसाद ने अशोक चक्र क्लासण्2 से सम्मानित किया था। यही नहीं देवराज ठाकुर की इस जांबाजी के लिए भारतीय वायु सेना ने अपने गोल्डन जुबली कार्यक्रम में एक विशेष प्रकाशन में भी उनकी तारीफ की थी। स्व. देवराज ठाकुर के परिजनों को अभी तक यह मलाल है कि हिमाचल सरकार की ओर से उनके किसी परिजन को न तो नौकरी दी गई और न ही उन्हें किसी प्रकार की सहायता।
भागमल सोहटा ने दिखाई राह….
रजवाड़ा शाही के चंगुल से जनता को छुटकारा दिलाने की दिशा प्रजामंडल के सदस्य भागमल सोहटा ने दिखाई थी। शिमला के धामी के पास एक छोटी सी रियासत थी। 1937 में यहां का जनसमूह प्रेम प्रचारिणी सभा के नाम से जाना जाता था। सीताराम के नेतृत्व में लोगों ने बेगार प्रथा के विरुद्ध लगान में कमी और धामी प्रजामंडल को मान्यता के लिए आवाज उठाई। वहां के शासक राणा ने मांग अस्वीकार कर दी। जुब्बल रियासत के प्रजामंडल के सदस्य भागमल सोहटा के प्रतिनिधित्व में तब लोगों ने राजा के समक्ष यह मांग उठाई थी। 13 जुलाईए 1939 को 500 व 600 लोगों ने संदेशवाहक को राजा के पास भेजा इनके द्वारा भेजे गए संदेशवाहक को राणा ने कैद कर लिया और कोई जवाब नहीं दिया।
लाहौर जेल में बंद रहे मनफल सिंह…
सोलन जिला के 68 स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया है। धर्मपुर के भगवान सिंह स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कारावास गए हैं। बथालंग अर्की के भजनू राम ने धामी गोलीकांड में भाग लिया था और इन्हें छह माह की कारावास भी हुई थी। नालागढ़ के मंगल राम को ब्रिटिश सरकार द्वारा विद्रोह करने के आरोप में आसान व चटगांव में तीन मास की कारावास की सजा भी दी गई थी। नालागढ़ के मनफल सिंह को भी ब्रिटिश सरकार ने नौ अगस्त1942 को विद्रोह करने के आरोप में एक वर्ष के लिए लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया था। मनसा राम भी आजाद हिंद फौज के सदस्य रहे हैं तथा विद्रोह के आरोप में कारावास की सजा काट चुके हैं।
किरपा राम ने अंग्रेजों से लिया लोहा…
महान स्वतंत्रता सेनानी किरपा राम सहित जिला हमीरपुर के आठ महानायकों ने देश की आजादी के लिए पसीना बहाया है। आजाद हिंद फौज का हिस्सा रहे लंबलू के समीपवर्ती डुगली डबरेड़ा गांव के किरपा राम ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था। आजाद हिंद फौज के दलेर जावानों में शुमार किरपा राम को इसी बहादुरी के बूते भारतीय सेना में शामिल किया गया था। हालांकि 13 सितंबर 1920 को जन्मे किरपा राम ने महज 33 साल की उम्र में 14 मई 1952 को प्राण त्याग दिए थे।
मंडी में 50 ने जलाई मशाल…
देश को अंग्रेजों से आजाद करवाने में मंडी से 50 के करीब स्वतंत्रता सेनानियों ने अहम भूमिका अदा की। मंडी से कृष्णानंद स्वामी जी ने 1921ण्22 के लिए सक्रिय रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। इसके अलावा पंडित गौरी प्रसादए पूर्णानंदए हिरदा रामए पंडित पदमानभ के अलावा अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजादी दिलाने के लिए उनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा। सुकेत से भी 12 के करीब स्वतंत्रता सेनानियोंं देश को आजाद करवाने में अपने जीवन की आहूति दी।