घुमारवीं : हिमाचल प्रदेश में पिछले दो दिनों से हो रही लगातार बारिश से जहां आम आदमी अपने घरों में दुबके हुए हैं। वहीं गद्दी लोगों पर यह मौसम भी भारी पड़ता है। यह लोग बिलासपुर, हमीरपुर, ऊना, मंडी, सोलन में हर साल बड़ा भंगाल कांगडा, चंबा व किन्नौर आदि जिलों से आते हैं। हजारों भेड-बकरियां साथ लाते हैं। लेकिन समय के साथ-साथ अब यह कारोबार कम होने लगा है।
कांगडा बैजनाथ से सैंकड़ों किमी दूरी तय करके जंगलों में अपने पशुओं को चराने वाले चरवाहे का कहना है कि अब दिन-प्रतिदिन ये कारोबार खत्म होने की कगार पर है। क्योंकि जंगल जल रहे हैं, घास खत्म हो रही है। अगली पीढ़ी ये काम नहीं करना चाहती तो कैसे काम चलेगा? साहब जंगल में इतने पशुओं के साथ इतनी सर्दी में दिन-रात गुजारना आसान नहीं होता। कुछ पशुओं को तो हिंसक जानवर बाघ-तेंदुआ भी शिकार बना जाते हैं। फिर कैसे काम चलेगा। हमें तो ऐसा लगता है कि यह काम हम तक ही सीमित है।
आपको बताते चले कि हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से गद्दी व्यवसाय अपनाने वाले लोगों को एक विशेष अधिकार दिया गया है। यदि वे निचले इलाकों के जंगलों में अपनी भेड़-बकरियों को चरा सकते हैं और यह जंगल इनके नाम से बांटे गए हैं। मगर एक बात का तो लोगों को उदाहरण दे जाते हैं कि चाहे कितनी भी ठंड या बारिश का मौसम हो। वो लोग खुले आसमान के नीचे ही आग के सहारे समय गुजारते हैं। यह लोग बड़े मेहनती भोले- भाले व जज्बाती होते हैं। इसलिए किसी से कोई खास सरोकार नहीं रखते और अपने काम में व्यस्त रहते हैं।