नाहन: सिरमौर रियासत के गणतंत्र भारत में विलय के हस्ताक्षर अंतिम शासक राजेंद्र प्रकाश ने 13 मार्च 1948 को किए थे। इसके लिए भारत सरकार के सचिव कृपलानी को रियासत के मुख्यालय में दस्तावेज साईन करवाने के लिए भेजा गया था। लेकिन इस तारीख से पहले ही रियासत के दुर्गम इलाकों से यहां लोग जुटना शुरू हो गए थे।
टीएस नेगी द्वारा लिखे गए सिरमौर गेजेटियर के पृष्ठ-71 पर यह लिखा गया है कि शासक के पक्ष में 30 हजार का जनसैलाब उमड़ा था। जनसैलाब ने बाकायदा एक प्रदर्शन भी किया था। चौगान मैदान लोगों से भर गया था। जनसैलाब के सामने शासक ने विलय पर सहमति जताई, तब जाकर विरोध प्रदर्शन ठंडा हुआ। यहां तक की भारत सरकार के सचिव कृपलानी को भी जन समूह को संबोधित करने पर बाध्य होना पड़ा था। 1947 में विभाजन के दौरान पूरा देश दंगों की आग में जल उठा था, लेकिन रियासत में साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहा।
शासक ने पाकिस्तान जाने के इच्छुक मुस्लिमों को विशेष सुरक्षा के इंतजाम किए थे। यहां तक की पाकिस्तान रेडियो ने भी सिरमौर रियासत के लोगों व शासक की सौहार्द को लेकर प्रशंसा की थी। इतिहासकार व राजघराने के सदस्य कंवर अजय बहादुर सिंह का कहना है कि 13 मार्च 1948 को शहर की तस्वीर अलग थी। बड़ा जन समूह शासक के पक्ष में उतरा हुआ था।
चूंकि शासक भी विलय ही चाहते थे। यही कारण रहा होगा कि जब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी सहमति दी होगी तो प्रजा भी शांत हो गई थी।
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