भुंतर : कुल्लू जिला में बादल फटने का सिलसिला कई वर्षों से शुरू है। सबसे पहला बादल पार्वती वैली स्थित शाट नाला में फटा था। शाट नाले में पड़े बड़े-बड़े पत्थर और पहाड़ियों में लगे मिट्टी के निशान उस मंजर की याद ग्रामीणों को आज भी दिलाते हैं। जलवायु परिवर्तन स्टडीज की पार्वती यात्रा पर आए सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज टीम, जलवायु विभाग के विशेषज्ञ व देश के विभिन्न क्षेत्र से आए हुए पत्रकारों के सामने ग्रामीणों ने बाढ़ का दर्द बयान किया।
बुजुर्ग ग्रामीण कमल चंद ने बादल फटने की घटना बारे जानकारी देते हुए कहा कि 11 जुलाई 1994 को यहां बादल फटने से आई भयंकर बाढ़ ने 27 लोगों की जिंदगियां निगल ली थी। बाढ़ का रूप इतना भयंकर था कि नाले के चारो और से पहले सीटी बजने जैसी आवाज आई जो बहुत डरावनी थी। देखते ही देखते बाढ़ ने लोगों के मकानों व दुकानों सहित शाट नाले पर बने पुल को भी नष्ट कर दिया था। कमल चंद ने बताया कि उनका पूरा परिवार बाढ़ के आगोश में समा गया, केवल एक पोता बचा था। शाट के हेमराज का कहना है कि वह उस समय नौं महीने का था, जब मेरा परिवार भी इस बाढ़ में बह गया था। उनकी परवरिश दादा-दादी ने की थी।
वही महेंद्र सिंह ने बताया कि 16 वर्ष की आयु में बादल फटने का ख़ौफ़नाक मंजर हमने देखा है। उनकी आंखों के सामने बहुत कुछ तबाह हुआ। आज भी जब उस घटना की याद आती है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बाढ़ से पीड़ित ग्रामीण आज भी सरकार और प्रशासन से खफा है। उनका कहना है कि उस समय सभी ने सहानुभूति जताई लेकिन इस नाले में आज तक किसी ने क्रेटवाल लगाने तक की जहमत नहीं उठाई। जलवायु विभाग से आए हुए डिप्टी कोऑर्डिनेटर क्लाइमेंट सैल हिमाचल प्रदेश डीसी ठाकुर ने कहा कि लैंडस्लाइडिंग को रोका तो नहीं जा सकता लेकिन इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
इस तरह की टेक्नोलॉजी तैयार है जो स्लाइडिंग आने से पहले सचेत कर देगी। सेंसर द्वारा भूमि में हल्की सी हलचल होने से सायरन बस जाएगा जिससे स्लाइडिंग होने से पहले सुरक्षित स्थान पर पहुंच कर जान-माल के नुकसान को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के सेंसर आईआईटी मंडी द्वारा कोटरोपी में रिसर्च के लिए लगाए गए हैं क्योंकि यह एरिया भी स्लाइडिंग प्रभावित है। पार्वती वैली के शाट नाले में भी ऐसे सेंसर लगाने को प्रपोज किया है। अगर प्रपोजल मिलती है तो यहां भी इस तरह के सेंसर लगाए जा सकते है। अगर स्लाइडिंग आने से पहले ही सूचित करने वाले सेंसर शाट में लगाया जाते हैं तो वहां की जनता के लिए यह बहुत बड़ी बात होगी।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी भारत सरकार मंत्रालय के तत्वधान से व सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज द्वारा जलवायु परिवर्तन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय स्तरीय कार्यशाला का आयोजन कुल्लू घाटी में किया गया। फील्ड विजिट में मणिकर्ण गुरुद्वारा में गिरी चट्टान और उससे हुए नुकसान का भी जायजा लिया गया। कार्यशाला का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर पत्रकारों को विशेषज्ञों और क्षेत्र की यात्राओं द्वारा इंटरैक्टिव प्रस्तुतियों के साथ उन्मुख करना है। कार्यशाला के आयोजन में सीएमएस दिल्ली की निदेशक अनुं आंनद, पर्यावरण विभाग हिमाचल प्रदेश के कोऑर्डिनेटर दुनी चंद ठाकुर, देश भर से विभिन्न मीडिया से आए हुए पत्रकारों ने भाग लिया ।