एमबीएम न्यूज/नाहन
हाल ही में पशुपालन विभाग द्वारा मातर के भेड़ों गांव में ऊंटनी को बीकानेर से लाकर अबुल हसन के हवाले किया गया है। मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर यह गांव सामान्य धारा से हटकर है। गांव में सामान की ढुलाई के मकसद से ऊंटों को सैंकड़ों सालों से पाला जाता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि ऊंटनी के दूध को खुले बाजार में बेचने की व्यवस्था की जा रही है। बकायदा विभाग ने ‘‘क्यों पिएं ऊंटनी का दूध’’ शीर्षक से एक पत्रिका भी तैयार की है।
शहर में दूध गांव से एक विशेष वाहक के माध्यम से पहुंचेगा। इसकी कीमत 80 रुपए प्रतिकिलो तय हुई है। फिलहाल 8 से 10 किलो दूध ही उपलब्ध होगा। बताया गया कि पंजाब, चंडीगढ़, उत्तराखंड के अलावा जम्मू-कश्मीर में भी ऊंटनी का दूध आम लोगों को उपलब्ध नहीं होता है। हरियाणा में हिसार क्षेत्र में ऊंटनी होने की संभावना जताई गई है। विभाग ने ऊंटनी को अबुल हसन के हवाले लालन-पोषण के लिए किया है।
पशुपालन विभाग की सहायक उपनिदेशक डॉ. नीरू शबनम की मानें तो इजराईल, संयुक्त अरब व ईराक व ब्रिटेन में हुए अनुसंधान यह इंगित करते हैं कि ऊंटनी का दूध पीलिया, टीबी, ह्दय रोग, उच्च रक्तचाप व बच्चों में दूध की एलर्जी के उपचार के लिए लाभदायक है। हर तरह का उत्पाद तैयार किया जा सकता है। इस दूध में लोहा, जस्ता, तांबा व विटामिन-सी की मात्रा पाई जाती है। डॉ. शबनम का सुझाव यह भी है कि उष्ट्र दूध का कार्यात्मक खाद्य के रूप में रोजाना सेवन होना चाहिए। दूध को मट्ठे या झाज के रूप में लिया जा सकता है।
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बहरहाल रोचक बात यही है कि ऐतिहासिक शहर के लोगों को ऊंटनी का दूध नसीब हुआ है। यह अलग बात है कि लोग अपने स्तर पर इसे किस तरीके से लेते हैं। ऊंटनी के साथ उसका चंद महीने का बच्चा भी लाया गया है, जिसका जन्म फरवरी महीने में हुआ था। ऊंटनी का नामकरण मेहर के तौर पर करीब एक सप्ताह पहले किया गया है।