एमबीएम न्यूज / शिमला
काश! कुछ समय ओर संसार को अलविदा न कहते तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी अपनी खुली आंखों से रोहतांग टनल के सपने को साकार होते देख लेते। पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर देवभूमि स्तब्ध है, क्योंकि हिमाचल उनका दूसरा घर रहा है।
दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाल सखा अर्जुन गोपाल ने दोस्त से रोहतांग टनल के निर्माण का आग्रह किया था। देश से छह महीने तक समूची लाहौल-स्पीति घाटी शेष भारत से कटी रहती थी। बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस टनल पर सैद्धांतिक हामी भर दी थी। यह अलग बात है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खुद भी इस टनल का शिलान्यास नहीं कर पाए थे। 8.8 किलोमीटर लंबी इस सुरंग का 90 फीसदी कार्य 2017 में ही पूरा हो गया था। चंद महीनों में कार्य पूरा हो जाएगा।
इस टनल का निर्माण कार्य पूरा होना ही केंद्र व राज्य सरकार की अटल जी को बड़ी श्रद्धांजलि होगी। लाहौल-स्पीति जनजातीय कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ. चंद्रमोहन परशीरा ने अक्तूबर 2017 में यह मांग उठाई थी कि टनल का नाम अटल बिहारी वाजपेयी व उनके लाहुली बाल सखा अर्जुन गोपाल के नाम पर रखा जाना चाहिए। इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा गया था।
बताते हैं कि मौरावियन मिशनरी ने 135 साल पहले सुरंग का सपना देखा था। लेकिन हकीकत उस वक्त सार्थक होती नजर आई, जब अर्जुन गोपाल अपने दो सहयोगियों अर्जुन दोरजे व अभय चंद राणा के साथ दिल्ली पहुंचे थे। उस वक्त अर्जुन गोपाल की अटल जी से मुलाकात करीब 40 साल बाद हुई थी। यह भी बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर ही जनजातीय कल्याण समिति गठित की गई थी। रोहतांग टनल के लाहौल द्वार को साउथ पोर्टल भी कहा जा रहा है।
सुरंग के निर्माण से जहां स्पीति व पांगी के जीवन में बर्फ की भयानक कैद खत्म होगी, वहीं पर्यटन को भी पंख लगेंगे। साथ ही चीन व पाकिस्तान की सीमाओं पर भी असद भेजने में आसानी होगी। उल्लेखनीय है कि कारगिल युद्ध के दौरान श्रीनगर-लेह मार्ग को अवरुद्ध करने की कोशिश पाकिस्तानियों ने की थी। उस वक्त मनाली-लेह मार्ग की सामरिक अहमियत का अहसास भी हुआ था।