एमबीएम न्यूज़ / पावंटा साहिब
अनोखी धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं के लिए पहचाने जाने वाले जिला सिरमौर के शिलाई क्षेत्र में प्राचीन संस्कृति का परिचायक शांत महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। लगभग 12 साल बाद आयोजित हो रहे इस महायज्ञ का आयोजन शिलाई गांव में स्थित प्राचीन ठारी मंदिर में करवाया जा रहा है। महायज्ञ की विशेषता यह है कि इसमें शिलाई क्षेत्र के करीब 52 गांव सहित समूचे शाटी समुदाय के लोग सम्मिलित होंगे। शाटी समुदाय को कौरव वंश से संबंधित समुदाय माना जाता है।
दूरदराज शिलाई क्षेत्र में परिस्थितियां जितनी विकट है, यहां के रीति-रिवाज उतने ही अनूठे हैं। क्षेत्र में करीब 12 वर्ष में एक बार करवाया जाने वाला शांत महायज्ञ इसी अनोखी धार्मिक परंपरा का एक अनूठा उदाहरण है। स्थानीय निवासी प्रताप सिंह तोमर ने बताया कि यह शांति महायज्ञ में मां महाकाली के स्वरूप माता ठारी देवी की पारंपरिक व पौराणिक तरीके से पूजा अर्चना होती है। यह यज्ञ क्षेत्र में शांति और खुशहाली बनाए रखने के लिए आयोजित किया जाता है। मान्यता यह है कि क्षेत्र में देवी शक्तियां जागृत रहती हैं तो इससे आपसी सौहार्द और समृद्धि व शांति बनी रहती है।
ऐसे में 5, 7, 9 या 12 साल बाद शांति महायज्ञ करवाया जाता है। शांत महायज्ञ की परंपरा जितनी अनूठी है, इस यज्ञ की शुरुआत भी उतनी ही विचित्र है। देवी के आह्वाहन से पूर्व शास्त्रों की विधिवत पूजा की जाती है। शस्त्र पूजन के बाद गांव के पुरुष वर्ग हाथ में शस्त्रों को लहराते हुए लिम्बर नृत्य करते हैं। माना जाता है कि वैदिक मंत्रों से पूजित शस्त्र हाथ में लहरा कर देवी के आह्वाहन से दैवीय शक्तियां जल्द प्रकट होती हैं और क्षेत्र की बीमारियों व शत्रुओं से रक्षा करती है और क्षेत्र में सुख समृद्धि प्रदान करती हैं।
ग्राम के विद्वान पंडित नाग चन्द शर्मा बताते हैं कि हाथों में शस्त्र लहरा कर पारंपरिक नृत्य के माध्यम से देवी आह्वाहन करते हैं। यह लोग जहां एक और धार्मिक परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। वही यह दृश्य क्षेत्र की कबायली संस्कृति के भी परिचायक हैं। दरअसल शांति महायज्ञ लिम्बर नृत्य जैसे आयोजन देश में उत्तराखंड के ट्रांसगिरी जौनसार-बावर ईलाके व हिमाचल के गिरिपार क्षेत्र में ही आयोजित किए जाते हैं। करीब 12 सालों में एक बार आयोजित होने वाले यह देवी पूजा के साथ-साथ कबायली संस्कृति के भी परिचायक है।
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