मोक्ष शर्मा/नाहन
आखिरकार डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज का प्रशासन होश में आ गया है। पिछले कई महीनों से निशुल्क दवाओं की सरकारी सप्लाई पर नॉट फॉर सेल की मुहर नहीं लग रही थी। हालांकि पिछले कल तक भी पुराना सिलसिला ही चल रहा था। एमबीएम न्यूज नेटवर्क की पड़ताल में यह तस्दीक हुई कि दवाओं पर नॉट फॉर सेल की कोई भी मुहर नहीं थी।
दवाओं पर गर्वनमेंट सप्लाई से जुड़ी कोई भी बात अंकित नहीं की जा रही थी। लिहाजा सूत्रों ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क को इस बात की आशंका जाहिर करते हुए यह सूचना दी कि ऐसे में सरकारी फार्मेसी से दवाओं को खुले बाजार में न भेजा जा रहा हो। यह भी पता चला कि वितरित दवाओं के स्टॉक का रिकॉर्ड मैन्युअल ही रखा जाता है। अगर इसे कंप्यूटराइज्ड किया जाए तो हेराफेरी की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।
यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि नॉट फॉर सेल से जुड़ी जानकारी दवा उत्पादक कंपनियों को ही अंकित करनी थी या फार्मेसी के स्तर पर ही इसे किया जा रहा है। जानकार बताते हैं कि क्षेत्रीय अस्पताल को मेडिकल कॉलेज का दर्जा मिलने के बाद दवाओं की सप्लाई की मात्रा भी बढ़ी है। यह बात जांच का विषय है कि इस तरह की व्यवस्था को जानबूझ कर अंजाम दिया जा रहा था या नहीं। या फिर त्रुटिपूर्ण दवाओं पर नॉट फॉर सेल की मुहर नहीं थी।जानकार यह भी बताते हैं कि सरकारी डिस्पेंसरी में अब कई महंगी दवाएं भी आने लगी हैं।
उधर कॉलेज के मेडिकल अधीक्षक डॉ. केके पराशर का कहना है कि दवाओं पर नॉट फॉर सेल की जानकारी मिल गई थी। लिहाजा अमृत फार्मेसी के स्टाफ को तत्काल ही मुहर सुनिश्चित करने के आदेश दे दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि वो फिलहाल छुट्टी पर हैं। वापस लौटते ही इस बारे समीक्षा करेंगे कि आदेश की पालना हुई है या नहीं।