माधवी पंडित/नूरपुर
हालांकि सूबे में पहले भी बड़े हादसे हुए हैं, लेकिन नूरपुर हादसा ऐसा था, जिससे पूरी देवभूमि फूट-फूट कर रोने लगी। शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जहां नन्हें बच्चों की मौत का जिक्र न हुआ हो। क्योंकि इस त्रासदी में चार से 12 साल के मासूमों की जानें एक साथ चली गई थी।
अंतिम संस्कार में मानो कुदरत को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था। मासूमों की जब चिताएं जली तो हल्की बारिश की फुहारें भी पडऩी शुरू हो गई थी। मतलब कुदरत की खुद अपनी आंखें नम हो गई थी। मंगलवार को सबसे ह्दय विदारक नजारा पुहाड़ा गांव में था, जहां एक साथ 10 बच्चों की चिताएं जली।
विडंबना देखिए, जो कल तक जो बच्चे लोरी से सो जाया करते थे, वो चीखों पुकार सुनकर भी नहीं उठ रहे थे। हादसे की चीखें 6-7 गांवों में सुनाई दे रही थी। मंगलवार को ही मासूमों के शव घरोंं में पहुंचे थे। जिगर के टुकड़ों की अर्थी उठते देख परिजनों के साथ हरेक शख्स बिलख रहा था। कांगड़ा जिला से लेकर दक्षिण हिमाचल तक मासूमों की आत्मा शांति की प्रार्थनाएं की गई तो जसूर व नूरपुर के बाजार पूरी तरह बंद रहे। मासूमों की दर्दनाक मौत के कारण गांव में चूल्हा नहीं जला।
हादसे के जख्म इतने गहरे हैं कि सुधीर ने अपना इकलौता बेटा तरुण खो दिया तो दो भाईयों ने अपने चारों ही बच्चे खो दिए। बहरहाल जानकारी यह है कि 23 में से 19 बच्चों का 6 गांवों में अंतिम संस्कार किया गया, जबकि 5 साल से कम उम्र के 4 बच्चों को दफनाया गया। सनद रहे कि आज ही बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम किया गया। इसके बाद शव परिजनों को सौंप दिए गए थे।
उधर नूरपुर अस्पताल में घायल बच्चों के परिजनों का हौंसला बढ़ाने के लिए खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पहुंचे थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा समेत कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी अस्पताल में बच्चों का कुशलक्षेम पूछा।