राकेश कुमार / सोलन: आधुनिकरण की दौड़ में पांरपरिक व्यवसाय दम तोड़ता नजर आने लगा है । विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अब पांरपरिक व्यवसाय से रोटी रोजी कमाना दुर्लभ कार्य होने लगा है यही कारण है कि अधितर लोगों ने अपने पारंपरिक कार्य करने से तौबा कर ली है । लेकिन ऐसे कम ही सही लेकिन कुछ लोग अब भी अपने पांरपरिक कार्य में जुटकर अपने परिवार की आए बढ़ाने में जुटे हैं । यह है जिला सोलन के अर्की तहसील के जखौली गांव की महिलाएं । पूर्वजों से यहां के लोग पांरपरिक पतल बनाने का कार्य करते थे । काम करके अच्छी आय होती थी । परिवार खुशहाली से चलता था । लेकिन समय के साथ आधुनिकता की दौड़ में पतल बनाने का कार्य लगभग समाप्त हो गया । पतल अब कागजों के आर्कषण डिजाईनों में उपलब्ध है लेकिन पतल की मांग जहां कम हुई वहीं कड़ी मेहनत के दाम भी लोगों को नहीं मिल पाते । लेकिन जखौली गांव की महिलाएं घर के काम के बाद आज भी इस कार्य को जिंदा रखे हुए है । परांगत हाथों में बिजली सी तेजी, जंगलों में घुमकर पतलों के पत्तों को एकत्र करना व कड़ी मेहनत से जोड़कर तैयार करके बाजार तक पहुंचाने का कार्य थका देने वाला कार्य है। भले की इस कार्य से आय कम होती है तथापि पारंपरिक व्यवसाय में परांगत महिलाएं अपने परिवार की आय बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही । परिवार के मुख्यिा को मजबूरन पांरपरिक व्यवसाय से तौबा करनी पड़ी व आय अर्जित करने के लिए शहर का रूख करना पड़ा लेकिन इनके परिवार की महिलाएं आज भी इस व्यवसाय से खुशहाली लाने का प्रयास कर रहीं है। जखौली गांव की महिलाएं एकत्र होकर पतल बनाने का कार्य करती हैं लेकिन इस व्यवसाय के लिए मार्किटिंग एवं आर्थिक पंूजी के अभाव के कारण इस व्यवसाय का स्वरूप छोटा है व आय कम। हालांकि हिमाचल प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार अनेक कदम उठा रही है तथापि जिला के दूरदराज के अनेक ऐसे गांव में जहां इस प्रकार की योजनाएं छू भी नहीं पाती । इसी कारण यहां महिलाओं को उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता । अगर हुनर की पहचान करके ग्रामीण क्षेत्रों में नाबार्ड से लेकर अनेक बैकों की योजना इन महिलाओं तक पहुंच जाए व उन्हें इस कार्य का व्यवसायिक तरीके से करने के लिए सरकार प्रोत्साहन दे तो ऐसे में ये थके चेहरे, बिजली से तेजी से चलते हाथ ,करिशमाई अंदाज से ग्रामीण क्षेत्र में भी हरियाली ला सकते हैं व घर के किसी सदस्य को दूर जाकर मजदूरी करने की आवश्यकता नहीं होगी । सोलन जिला के अर्की उपमंडल के गांव जखौली की ये महिलाएं बिना सरकारी सहायता से पतल बनाने का व्यवसाय कर रहीं हैं। पिछले 15-20 वर्षो से पतलों व डूनों को तैयार करने का कार्य करती आ रही है । महिलाओं की मेहनत अपने परिवार का भरण पोषण करने में अपनी उपयोगिता साबित कर रही है यह कहना है पतल बनाने के व्यवसाय से जुड़ी वृद्ध महिला जानकी देवी का । उनका कहना है कि उम्रदराज होेने के बाद भी वे इस कार्य को करती आ रहीं है व आने वाली पीढ़ी की महिलाओं को भी सिखा रही है । उनका कहना है कि उनके समय में पतल का व्यवसाय परिवार पालन के लिए काफी था । उन्होने कहा कि उन्होने इस व्यवसाय से परिवार के बच्चों को पढ़ाया,मकान बनाया व अनके घरेलू खर्च निकाल पाए । लेकिन अब कागज की पतल से प्रतिस्पर्धा के कारण व्यवसाय समाप्त होता जा रहा है । स्थानीय महिला जया देवी ने बताया कि जमाने के साथ पतल बनाने का व्यवसाय दम तोड़ रहा है । लेकिन इसके बावजूद वे घर का काम समाप्त करके दो जून की रोटी के लिए मिलकर पतल बनाकर आय अर्जित कर रहीं है । जमना देवी का कहना है कि कठिन परिश्रम के बाद मात्र 100 पतलों के 35 रूपये मिल पाते हैं । आय का अधिकतर हिस्सा बिचौलियों में बंट जाता है । लेकिन इसके बावजूद भी वे पतल बनाने के कार्य से प्रसन्न है कि वे चाहे थोड़ा ही सही परिवार की आय में सहयोग कर रहीं है । उन्होने सरकार से आग्रह किया कि उनके व्यवसाय को जिंदा रखने के लिए सांझे तौर पर महिलाओं को आर्थिक मदद दी जाए ।
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